Sunday, June 27, 2021

नवगीत : मृत पड़ा विश्वास हो : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
मृत पड़ा विश्वास हो
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~14/12

भाव जिसके मृत पड़े हों
मृत पड़ा विश्वास हो
क्या भला जीवित रहे वो
मर चुकी हर आस हो।।

इक तिमिर दर्पण बना सा
मित्र जिसके साथ का
दृश्य छवि प्रतिबिंब ओझल
जो नहीं है हाथ का
वृक्ष सम्मुख है खड़ा या
एक तिनका घास हो

दोष अन्तस् के चमकते
हो सकेंगे दूर ये
श्यामला आनंद छाए
कर हृदय भरपूर ये
छाँटती भुरळी नहीं जब
लाभ क्या दे रास हो।।

आवरण ये शांत सा है
लोक धारे यूँ खड़े
कौन अपने हैं पराए
दृग पिपासित से गड़े
छूटती है डोर हिय की
बन्द होती श्वास हो।।

भुरळी - कनक में हल्के सूखे हुए तृण
रास - उपज को साफ करने की पद्धति

© संजय कौशिक 'विज्ञात'

Saturday, June 26, 2021

नवगीत : नींद तड़पती : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
नींद तड़पती 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी - 16/14

बाँस तोड़ती सी खटिया पे
नींद तड़पती जीवन की
स्वप्न लीलती सी परछाई
मार्ग सदा नव यौवन की।।

पुष्प जाल में फँस जाते जब
रोग वहाँ दे तड़पाहट
कष्ट वार के अर्पण करता 
शूल सदा देते आहट
छील हिय तभी रक्त प्रवाहित
भाव अनूठे त्रस्त करें
मौन वेदना सी चीत्कारे 
चीख हृदय को पस्त करें
हाथ घूमते वस्त्र पुकारें
मार पड़े जब धोबन की।।

त्रास फाँस के कंपन देता
दीप खड़ी लौ यूँ भड़के
एक नेत्र में बैठा तिनका
अश्रु बहाता सा रड़के
नाव डूबती चाह किनारा
सोच लहर ये नित बहती
सिंधु मध्य की तीव्र सुनामी
बात हृदय समझे कहती
आत्मघात की रीत निभाती
शेष कथा ये जोगन की।।

पाट घूमता काल बली का
शोर करे चक्की सुर में
घाव बिंध के घुन से रिसता
बोल खटकता सा उर में
कौन देखता उसके छाले
और वहाँ उसकी पीड़ा
शब्द खेलते अन्तस् हिय से
एक निराली ये क्रीड़ा
क्षोभ बाँटती विष की पुड़िया
हास्य विवाद अशोभन की।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, June 23, 2021

नवगीत : व्यंजनाओं ने पुकारा : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
व्यंजनाओं ने पुकारा
व्यंजना शृंखला-5
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी~~ 14/12

व्यंजनाओं ने पुकारा
गीत क्रंदन ताल पर
सुर सुबकते कुछ सिसकते
अश्रु ठहरे गाल पर।।

मौन की अवधारणा भी
टूट के बिखरी वहाँ
अंश हिय आहत हुआ फिर
शब्द थे बाधित जहाँ
रुद्ध बाँसुरिया सुनाए
यूँ व्यथा इस हाल पर।।

रागिनी का अस्त आँचल 
बाध्य झीरम झीर सा
निम्न कोलाहल वहाँ का
रिक्त नदिया तीर सा
फड़फड़ाहट गूँज के स्वर 
उस हवा की चाल पर।।

वो मधुर मिश्री नहीं है
तंतु भी ओझल दिखा
प्रीत संगम बंधनों के
तार वीणा पर लिखा
फिर नमक से वर्ण पिघले
इस हृदय की आल पर।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Monday, June 21, 2021

सुमुखि सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक विज्ञात

सुमुखि सवैया  
शिल्प विधान 
संजय कौशिक विज्ञात 


विधान
सुमुखि सवैया सात जगण और लघु-गुरु से निर्मित होता है। इस छंद में 11, 12 वर्णों पर यति रखी जाती है। मदिरा सवैया छंद के आदि में एक लघु वर्ण जोड़ने से इस छंद का शिल्प विधान कहा जाता है।
121 121 121 12, 1 121 121 121 12


उदाहरण 

विरुद्ध हुए जन वे उनके, जिनके बल का जब भेद लगा।
वही तब नाव नहीं बहती, तल में जिसके वह छेद लगा।
जहाँ अपने कुछ घात करें, सच में हिय में तब खेद लगा।
दिखे सब सर्प समान तभी, मन चंदन का तरु मेद लगा।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण

प्रसंग सुनाकर प्रेम करे, वह प्रीतम से मिलके सजनी।
मयंक दिखे जब नाच उठे, तम से कुछ आहत वो रजनी।
विशेषण नूपुर झंकृत यूँ, पहने वह पायल है बजनी।
उदास हुई जब कंठ लगी, दृग ओझल सी बनके तजनी।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण 

कृशानु जले मन भीतर में, वह ताप दिखे किसको दहता।
वियोग प्रभावित देह जले, बस प्रीतम ही इसको सहता।
कटाव छिड़े जब बादल से, वह मौन हुआ दुख है सहता।
विहंग घिरा उस पिंजर में, फिर कौन सुने किसको कहता।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण

प्रभाव दिखा कर मुग्ध करे, वह संत वहाँ पर देख खड़ा।
महान बना जब मार पड़ी, सलवार उठा कर दौड़ पड़ा।
विचार किया यमुना दिखती, वह बांध तिरा निज पेट घड़ा। 
समस्त प्रजा यह देख हँसे, कितना मन भावन संत बड़ा।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


उदाहरण 

अमर्ष नियंत्रण खो कर यूँ, प्रतिघात बढ़े जब कष्ट मिले।
विरुद्ध हुआ वह कार्य करे, फिर आप कहो कब एक खिले।
विचार बने कब नेक कहाँ, जिनसे गिरते नित श्रेष्ठ किले।
तिरंग हुआ यह क्रोधित सा, जिसके हिय अंतस नित्य छिले।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


उदाहरण 

दहाड़ उठा जब वीर वहाँ, तब शेर हुआ रण धीर वही।
तिरंग लिए वह नित्य बढ़ा, यह गौरवता नित ठीक कही।
हिमालय भी द्रव सा बहता, बस शौर्य दिखे यह एक सही।
विराट यही बनता खिलता, दिखता हर सैनिक खोल बही।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, June 20, 2021

नवगीत : परिणय सूत्र की वर्षगाँठ : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
परिणय सूत्र की वर्षगाँठ
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

सूत्र परिणय खिल उठा फिर
हर्ष हिय लेकर बधाई
वर्ष अग्रिम आ गया ले
स्मृति मधुरतम सी मिठाई।।

गाँठ परिणय वर्ष अनुपम
बाग सी मोहक खिली है
पुष्प काँटों की धरोहर
हर्ष क्रंदन ले मिली है
फिर झिली है रार गहरी
आग अपनो की लगाई।।

कुछ वचन जीवन पुगाता
चार फेरों सा फिरा है
मंत्र उच्चारण करे जो
कष्ट में फँसता घिरा है
व्याधियों का रोग टाला
हर प्रथा हँसके निभाई।।

मील का पत्थर कहे ये 
आज अभिनंदन तुम्हारा
पल खिले पुलकित पुकारें
आज गौरव गान प्यारा
और शहनाई कहे फिर
श्रेष्ठ ये जोड़ी सवाई।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

रस परिभाषा तथा उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'

रस परिभाषा तथा उदाहरण
संजय कौशिक 'विज्ञात'


रस के प्रकारों की यदि बात की जाए तो मुख्य रूप से रस नौ प्रकार के होते हैं परन्तु वात्सल्य एवं भक्ति को भी रस माना गया हैं इसलिए इनकी संख्या 11 मानी गई है-


1 शृंगार रस 
2 हास्य रस 
3 रौद्र रस
4 करुण रस
5 वीर रस 
6 अद्भुत रस 
7 वीभत्स रस 
8 भयानक रस
9 शांत रस 
इन्हें भी सम्मिलित किया गया है 
10 वात्सल्य रस 
11 भक्ति रस 

शृंगार रस की परिभाषा
नायक और नायिका, प्रेमी-प्रेमिका और पति एवं पत्नी जब मिलते या बिछड़ते हैं तब उनके हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है उसे स्थाई भाव को 'रति' कहते हैं और उस भाव से उत्पन्न रस को शृंगार रस  कहते हैं। यह रस मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है- संयोग शृंगार, वियोग शृंगार।

1 रति शृंगार संयोग, वियोग


उदाहरण:-

घूँघट खोल कली हँसती, दिखती यह एक परी सम है।
उज्ज्वल सा तन श्वेत दिखे, तब देख कहाँ रति से कम है।
रक्तिम रूप धरे नित ही, पर चंचल यौवन में दम है।
आज नहीं भँवरा दिखता, इस कारण आँख हुई नम है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

संयोग शृंगार रस की परिभाषा
जहां पर नायक अथवा नायिका के मिलने का वर्णन होता है वहां पर संयोग शृंगार होता है।


उदाहरण:-

दीप जले तब एक शिखी, जलती रहती तन राख करे।
दीपक के परिरंभन में, वह नेह लुटा कर घात हरे।
बात करे हर रात वही, हिय हर्ष समर्पण याद भरे।
नृत्य सदा करती रहती, निशिवासर प्रेम उमंग परे।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'


वियोग शृंगार रस की परिभाषा
जहां पर नायक अथवा नायिका के बिछड़ने का वर्णन किया जाता है वहाँ वियोग शृंगार होता है:


उदाहरण:-

आग लगी विरही मन में, तन पे गहरे फिर घाव पड़े।
वेदन के स्वर से निकले, धुन पावक से हिय पूर्ण घड़े।
ले दहके अधरों पर यूँ, वह प्रीतम नाम कृशानु कड़े।
और मिले कब शांति प्रिया, यह सोच विचार विकार अड़े।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'

करुण रस रस की परिभाषा
जब किसी प्रिय व्यक्ति एवं मनचाही वस्तु के नष्ट हो जाने या उसे कोई आघात हो जाने पर हृदय में जो शोक उत्पन्न होता है, उसे ही करुण रस कहते हैं. इसमें विभाव, अनुभाव, संचारी भाव तीनों के मेल से स्थाई भाव उत्पन्न होता है जिसे 'शोक' कहते हैं

2 करुणा करुण

उदाहरण:-

पाटल कण्टक युद्ध हुआ, वह पाटल जीत गया तब से।
अश्रु प्रवाहित कण्टक के, फिर बाग उजाड़ बना जब से।
युद्ध भला कब ये कहता, सुन क्रंदन आज कहे सब से।
नेह सुवासित ये बगिया, महके सबके घर में अब से।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


शांत रसरस की परिभाषा
जब इंसान को परम ज्ञान प्राप्त हो जाता है सांसारिक मोह माया और संसार की समस्त क्रियाओं को छोड़कर वैराग्य में चला जाता है और अपनी आत्मा का परमात्मा से मिलन करने के लिए वैरागी अथवा सन्यासी हो जाता है. तू उसके हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है उस स्थाई भाव को “निवेद” या उदासीनता कहते हैं और इस कारण ही शांत रस की उत्पत्ति होती है।

3 निर्वेद शांत


उदाहरण:-

तत्व परे यह ज्ञान मिला, अब हर्ष विषाद उदास खड़े।
शांत हुई मति चित्त तभी, यह टूट विकार गए जबड़े।
ये क्षणभंगुर जीवन है, अनुशीलन वेद पढ़े रगड़े।
हर्ष विबोध कहे तब ही, मिटते सब काल बली झगड़े।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


रौद्र रस रस की परिभाषा
जब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य की निंदा या अपमान किया जाता है अथवा किसी व्यक्ति द्वारा अपने गुरु या सम्माननीय व्यक्ति का अनादर किया जाता है। तो उससे उत्पन्न स्थाई भाव को नाम की क्रोध कहते हैं और 'क्रोध' नामक स्थाई भाव के कारण उत्पन्न रस को रौद्र रस कहते हैं।

 4 क्रोध रौद्र


उदाहरण:-

वृक्ष उखाड़ उजाड़ दिये, फिर बंदर शोर पुकार रहा।
और दशानन काँप गया, मुख वानर और हुँकार कहा।।
हास्य यहाँ पर कौन करे, यह सागर दे नग और बहा।
मच्छर सा वह वानर या, कर एक वहाँ छल दैत्य फहा।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

वीर रस रस की परिभाषा
वीरता से संबंधित किसी चित्र को देखकर अथवा मन में जोश भर देने वाली वीरता की कविताओं या पढ़कर को सुनकर हृदय में जो स्थाई भाव उत्पन्न होता है. उस स्थाई भाव को “उत्साह” कहते हैं. इस उत्साह के कारण उत्पन्न रस को वीर रस कहते हैं।

5 धृति/उत्साह वीर



उदाहरण:-

क्रोध जला कर भस्म करे, विकराल निशा पर रंग चढ़ा।
राख पुकार कहे उड़ती, तम का अपना अधिपत्य बढ़ा।
कालिख रौद्र बनी जबसे, यह रूप भयंकर देख मढ़ा।
वाद विवाद नहीं मिटता, तब वीर प्रकाश प्रमाद गढ़ा।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

हास्य रस रस की परिभाषा
किसी पदार्थ या किसी असाधारण व्यक्ति की असाधारण आकृति, विचित्र वेशभूषा, अनोखी बातें, और इच्छाओं से मन में जो विनोद नामक भाव उत्पन्न होता है उसे “हास” कहते हैं. यही हास नामक स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ मिलकर हास्य रस उत्पन्न करता है।

6 हँसी हास्य

उदाहरण:-


बारहवीं परिणाम मिला, वह बालक बोल पिता कहता।
औषधि का अब ज्ञान मुझे, यह अर्जित है करना रहता।
क्रोधित देख पिता उस पे, मति मूढ़ विषाणु तुझे दहता।
कारण सोच उतीर्ण हुआ, फिर द्रोह उसी पर क्यों ढहता।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

भयानक रस रस की परिभाषा
जब किसी अत्यंत भयानक एवं अनिष्टकारी लेख को पढ़कर,दृश्य को देखकर या उसके बारे में सुनकर मानव हृदय में व्याकुलता एवं डर के रूप में जो स्थाई भाव उत्पन्न होता है उसे “भय” कहते हैं. भय नामक स्थाई भाव के कारण उत्पन्न रस भयानक रस कहलाता है. इस प्रकार के रस में पसीना छूटना, दांत तले उंगली दबाना, रूह कांपना जैसे शब्द प्रयोग किए जाते हैं. आचार्य भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ अथवा ‘सम्पूर्ण इन्द्रियों का विक्षोभ’ भयानक रस है। 

7 भय भयानक 1भ्रमजनित 2 काल्पनिक 3 वास्तविक


उदाहरण:-


दीप जले जब बिम्ब उठे, भयभीत करे भ्रम एक वहाँ।
काल्पिक आड़ प्रकाश करे, वह देख भला कब सत्य कहाँ।
व्याकुल सा हिय यूँ डरता, यह कौन चले अब संग यहाँ।
कम्पित सा जन हाँफ रहा, तम देख रहा जिस स्थान जहाँ।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

वीभत्स रस रस की परिभाषा
किसी घृणा पूर्ण बात को सुनकर, शर्मनाक कार्य करने वाले व्यक्ति के बारे में जानकार,किसी घृणा पूर्ण दृश्य को देखकर अथवा दूसरों की निंदा से जो घृणा या गिलानी का भाव उत्पन्न होता है. उसे “जुगुप्सा” कहते हैं। जुगुप्सा, वीभत्स रस का स्थाई भाव है. मांस का सड़ना उसमें कीड़ों का पटना एवं जानवरों द्वारा उसे नोच नोच कर खाया जाना। ऐसे शब्द भी वीभत्स रस की पुष्टि करते हैं।

8 घृणा वीभत्स 1 शुद्ध 2 क्षोभन 3 उद्वेगी


उदाहरण:-


काग उड़े फिर चील वहाँ, नभ में मँडराकर शोर करें। 
और घृणा बढ़ती दिखती, यह नाक चढ़े सब देख डरें।
माँस पड़ा यह रक्त बहे, तब गंध बुरी उठ के उभरें।
क्षोभ बढ़े फिर व्याकुलता, द्रव नेत्र विदारक नित्य झरें।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

अद्भुत रस रस की परिभाषा
जब किसी आश्चर्यजनक वस्तु या व्यक्ति को देखकर मन में जो विस्मय यह आश्चर्य का भाव उत्पन्न होता है. उसे ही अद्भुत रस कहते हैं। अद्भुत रस का स्थाई भाव 'विस्मय' में होता है। बाप रे बाप, आंखें फड़ना, गदगद हो जाना जैसे शब्द अद्भुत रस की पुष्टि करते हैं।

9 आश्चर्य अद्भुत 1 दिव्य 2 आनन्दज

उदाहरण:-


नृत्य करें नटराज जहाँ, तब हर्ष अपार उमा खिलता।
दाँत तले वह ले उँगली, हिय उत्सुकतामय सा मिलता।
और अहा कह देख उन्हें, वह दृश्य मनोरम सा झिलता।
पुष्प करे फिर वर्षित वो, जब दिव्य दिखें ध्रुव भी हिलता।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


वात्सल्य रस रस की परिभाषा
जहां पर माता एवं पिता का बच्चों की प्रति प्रेम, बड़े भाइयों का छोटे भाइयों के प्रति प्रेम एवं गुरु का शिष्य प्रति प्रेम, स्नेह दर्शाया गया हो वहां पर वात्सल्य रस होता है। इस रस का स्थाई भाव 'वात्सल्य' होता है।

10 ममता वात्सल्य


उदाहरण:-


मोहित चंचल पुत्र करे, जब वत्सल प्रेम वहाँ निकले।
डाँट कहे फिर मातृ सुने, तब हास्य कहीं पर क्रोध मिले। 
चुम्बन मात करे हँसती, तुतलाहट पे ममता फिसले।
मुग्ध पिता कुछ उत्सुक से, हिय हर्ष मनोहर दृश्य खिले।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

भक्ति रस रस की परिभाषा
जहां पर ईश्वर के प्रति अनुराग एवं उनकी भक्ति का वर्णन किया गया हो वहां पर भक्ति रस होता है किस रस का स्थाई भाव 'अनुराग' होता है।

11-भगवद विषयक भाव --- भक्ति


उदाहरण:-


मात पिता प्रभु तुल्य रहें, अब इष्ट यही सुन देव भले।
कार्य कठोर बनें दिखते, हिय हर्ष पदार्थ समस्त पले।
वंचित जो जन हैं रहते, वह कष्ट प्रताड़ित हाथ मले।
सेवक पुत्र सदा बनते, घर स्वर्ग वही फिर कौन छले।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


ऊपर जो उदाहरण पढ़े वो मदिरा सवैया के हैं।

मदिरा सवैया शिल्प विधान :-

मदिरा सवैया में 7 भगण (ऽ।।) + गुरु से यह छन्द बनता है, 10, 12 वर्णों पर यति होती है। इसमें वाचिक भार लेने की छूट नहीं है ।

मापनी ~~
211 211 211 2, 11 211 211 211 2


संजय कौशिक 'विज्ञात'

किरीट सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

किरीट सवैया 
शिल्प विधान 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

किरीट सवैया नामक छंद आठ भगणों से बनता है। तुलसी, केशव, देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है। इसमें 12, 12 वर्णों पर यती होती है।
211 211 211 211, 211 211 211 211

उदाहरण - 1


खेल रहा यह काल यहाँ पर, कष्ट कठोर अनंत दिखाकर। 
औषधि पावन एक बनाकर, विश्व प्रभावित देश कराकर।
भारत की फिर नाक बची अब, विश्व कहे गुरु हर्ष जताकर।
और वहाँ उपलब्धि गिनाकर, सूक्ष्म विराट विषाणु मिटाकर।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'


उदाहरण - 2


जीवन कोजल धार कहें सब, काम करो कुछ तो मन भावन।
देख अपुष्पक पादप ये अब, जो ठहरे कह हो वह पावन॥ 
सीख मिले कुछ उत्तम ही जब, और निरंतर हो बस सावन।
आज बना चल चित्र मनोहर, लोग कहें बस देख सुहावन॥

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, June 17, 2021

सुख सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुख सवैया
शिल्प विधान 
संजय कौशिक 'विज्ञात'


सुख सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु गुरु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के अन्तिम वर्ण को दीर्घ करने से यह छन्द बनता है।
मापनी ~~ 
112 112 112 112, 112 112 112 112 12



 उदाहरण-1

जब पुष्प खिलें हिय नाच रहे, यह मोर सभी तब गीत सुनाइये।
इस कोयल के स्वर मंद दिखें, मधु ताल वहाँ कुछ आप बनाइये। 
स्वर पंचम लेकर कंठ उठे, लय कोमल सी फिर तान बजाइये।
यह बाग रहे फिर मूक खड़ा, धुन पावन सी मन भावन गाइये।

संजय कौशिक 'विज्ञात'




उदाहरण-2 

वह साँकल टूट गई पल में, झटसे झड़ते दिखते अवरुद्ध ये।
जब कृष्ण लिया वसुदेव उठा, चलते बढ़ते करते फिर युद्ध ये।
फिर स्नान करा यमुना चलती, तब देव हुए कह पावन शुद्ध ये।
तिथि अष्टम का क्षण पावन सा, अवतार लिया चमके दिन बुद्ध ये।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-3

फिर रावण का झड़ मान गया, हिलता डुलता पग अंगद का नहीं।
वह शूर सभा फिर लज्जित सी, कब दृश्य रहा इस वानर सा कहीं।
जय राम कहा फिर ठोक दिया, यह पैर समक्ष प्रजा दिखता यहीं।
पर मानव वानर कौन भला, हरि दूत बना जमके खिलता वहीं।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

महाभुजंगप्रयात सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

महाभुजंगप्रयात सवैया
शिल्प विधान
संजय कौशिक 'विज्ञात'


महाभुजंगप्रयात सवैया 24 वर्णों का छन्द कहा जाता है, यह छंद आठ यगणों (122) के द्वारा लिखा जाता है। इसे भुजंगप्रयात छंद का दुगुना छन्द कहा जाता है तभी इसका नाम महाभुजंगप्रयात छंद पड़ा है। इस छंद में 12, 12 वर्णों पर यति रखी जाती है।

मापनी ~~
122 122 122 122, 122 122 122 122



उदाहरण-1 

जहाँ आज दीवार देखी घरों में, मुझे लाज आई व आँखें झुकी हैं।
वहाँ शेष आशा निराशा दिखी है, नहीं खास बातें सभी जा चुकी हैं॥
जवानी करे जुल्म ऐसे यहाँ पे, बुढापा रहा देख सांसें रुकी हैं।
मरे मौत सौ सौ मरे भी नहीं हैं, बताएं सभी दोष ये कामुकी हैं॥ 

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-2 

हुतात्मी कहानी भरे गर्व भारी, सिखाये करें देश से प्रेम प्यारा।
लगा भाल मिट्टी दिखे एक टीका, दिखाए बनाये वही दृश्य न्यारा।
तिरंगा लिए हाथ जै हिन्द बोलें, जिसे देख काँपे सदा विश्व सारा।
खड़ी मृत्यु भी देख रोती जहाँ है, दिखा शौर्य योद्धा बने शुद्ध तारा।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-3

लिखी पातियों ने पुकारा उसे यूँ, किनारा भला वे कहाँ से करेंगे।
मिलेंगे भले आज आके नहीं वो, वहीं दूर से आह  पक्का भरेंगे।
उन्हें याद आये जहाँ भी हमारी, बुरे स्वप्न में भी नहीं वे डरेंगे।
कहीं चित्र होगा छिपाया उन्होंने, कभी हाथ में ले कभी वे धरेंगे।

संजय कौशिक 'विज्ञात'




उदाहरण-4

कहें शारदे भक्त सारे तुम्हारे, तुम्ही ज्ञानदा माँ सुनोगी हमारी।
खड़ी द्वार पे भीड़ हैं लाख प्यासे, तुम्ही से बनेगी यहाँ बात सारी।
विधा काव्य शिक्षा हमें ज्ञान दे दो, लिखें छंद प्यारे कहें बात प्यारी।
तुम्हारा यशोगान गायें सदा ही, करें बंध ये मात जै जै तुम्हारी।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'




उदाहरण-5  

डले आज झूले मने पर्व प्यारा, कहें तीज आई सभी झूल झूलें।
बड़ी कौन छोटी उठा टेक प्यारी, वहाँ गीत गायें नहीं आज भूलें।
दिखे उच्च आकाश में पात शाखा, उन्हें झूलते झूलते देख छूलें।
सभी पर्व आनंद सा हर्ष देते, समाए नहीं गर्व यूँ सर्व फूलें।

संजय कौशिक विज्ञात' 



उदाहरण-6 

लगे भूख तो माँगते रोटियाँ हैं, कहो स्वर्ण चाँदी चबा कौन पाते।
बुझा प्यास देता सदा एक लोटा, भला सिंधु से कौन पानी पिलाते।
दिखे नग्न जो देह कुर्ता उसे दो, दिखे कौन आकाश ऐसे उढाते।
सदा ध्यान से देख के ये चलो जी, कहाँ सम्पदा आप सारी लुटाते।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुंदरी सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुंदरी सवैया
शिल्प विधान 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुन्दरी सवैया छन्द 25 वर्णों का है। इसमें आठ सगणों और गुरु का योग होता है। इसका दूसरा नाम माधवी है। केशव ने इसे 'सुन्दरी' और दास ने 'माधवी' नाम दिया है। केशव[1], तुलसी [2], अनूप[3], दिनकर[4] ने इस छन्द का प्रयोग किया है।

मापनी ~~

112 112 112 112, 112 112 112 112 2

उदाहरण-1

स्वर का तुझको जब ज्ञान नहीं, फिर व्यर्थ कहाँ मुख खोल रहा तू।
यह गायन दुर्लभ है सुनले, श्रम के बिन क्यों अब बोल रहा तू। 
पहले करले कुछ कर्म जरा, बिन कर्म कहाँ सब तोल रहा तू। 
स्वर कोयल बाग सुने सब ही, रस काग कहाँ यह घोल रहा तू।




उदाहरण-2 

गुरुदेव हमें वरदान मिले, हम शिक्षित दीक्षित होकर जाएं।
इस जीवन का हर युद्ध लड़ें, फिर जीत वहाँ पर यूँ हम पाएं।
यह ज्ञान किया अब दान हमें, हम जीवन में नित ही गुण गाएं।
जब आप कहो मिलना मुझसे, तब दौड़ सदा हम यूँ दर आएं।

संजय कौशिक "विज्ञात" 




उदाहरण-3

प्रभु आज गणेश सुनो विनती, अब दृष्टि दयामय से अपनाओ।
यह भक्त पुकार रहे तुमको, सुन टेर जरा मत यूँ तरसाओ।
बस ज्ञान इन्हें कुछ दान करो, यह लेखन सिद्ध करो अब आओ।
नित देकर नेक कृपा सबको, कुछ पावन सी करुणा बरसाओ।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुखी सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुखी सवैया
शिल्प विधान
संजय कौशिक 'विज्ञात'


सुखी सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु लघु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के लिखने से यह छन्द बनता है।

मापनी ~~ 
112 112 112 112, 112 112 112 112 11


उदाहरण-1 

अपमान करें कुछ लोग जहाँ, तब देख विकार विचार किया कर।
चुप क्यों रहना हर बार वहाँ, फिर उत्तर भी सब श्रेष्ठ दिया कर॥ 
जब आहत वे करते तुझको, उनसे बदला हर एक लिया कर। 
परित्याग बने मन से उनका, मनभावन जीवन शेष जिया कर॥

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-2

विधि का यह श्रेष्ठ विधान दिखे, यह देश दिखे अपना नित पावन।
षट हैं ऋतुएं बसती जिसमें, यह हिन्द महान लगे मन भावन।
जब प्रीत बढ़े वह भी ऋतु है, कहते हम हैं जिसको सब सावन।
शुभ हैं गणना कहते वह भी, अपनी सुन वे सब एक इकावन।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-3

अभिमान किया जब रावण ने, तम देख हुआ यह अस्त दिवाकर।
कुल नाश हुआ कब शेष बचा, सब दम्भ चढ़ा यह भेंट सुधाकर।
सब स्त्री पर लालच त्याग चलो, मद काम विकार तजो हरि ध्याकर।
प्रभु राम रटो गुणगान करो, सुरती हिय में यह नित्य लगाकर।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-4

यह ज्ञान सनातन सीख यहाँ, नित हिन्द पुकार कहे सुन आकर।
यह मान पयोधि तजे कब यूँ, सुन पूछ स्वयं अब तो कुछ चाकर।
फिर शक्ति बढ़े जब पुंज दिखे, सत ओम सुधाकर से गुण पाकर।
चल सिंह समान कभी अबतो, यह छोड़ सियार पना चमकाकर।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, June 16, 2021

मुक्तहरा सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

मुक्तहरा सवैया
शिल्प विधान 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।

मापनी ~~ 
121 121 121 12, 1 121 121 121 121


उदाहरण- 1

कहाँ मकरंद बता मधु है, भँवरा यह पूछ रहा सब आज।
कली सुन शोर तभी खिलती, सब देख रहा यह सभ्य समाज। 
पधार रहे अब कौन यहाँ, बगिया महके किसके कह काज।
तभी कवि देख कहे कविता, उमड़े बन प्रेम कली रस राज॥

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण - 2

अखंड जले जब ज्योति कहीं, तब लोग कहें जय हो भगवान।
प्रभाव जगे वह धाम दिखे, बस तीर्थ लगे तब वो गुणवान।
पुराण प्रमाण वृतांत कहें, हरि नाम करे भव पार निदान।
विशेष प्रकार विधान यही, सच भाव सधें सच के अनुमान।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण - 3

निषंग लिए वह कौन खड़ा, जब तीर करें बस तीन पुकार।
लगे रस वीर बहा कर के, अब तीव्र सधें कुछ श्रेष्ठ प्रहार।
विराट बड़ा लघु रूप बना, हिय श्याम लिए तब नेक विचार।
कहे खटवांग समस्त वहाँ, यह युद्ध समाप्त दिखे इस बार।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

गंगोदक सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

गंगोदक सवैया
शिल्प विधान
संजय कौशिक 'विज्ञात'


गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'।
मापनी ~~ 
212 212 212 212, 212 212 212 212


उदाहरण -1

यूँ सुरों ने बजाई जहाँ बाँसुरी, साँझ ने गीत गाये सधी ताल में।
चाँदनी ने कहा चातकी से सुनो, झांझरी सी बजाई अभी हाल में।
कूक जो बाग में गूंजती सी दिखे, शांति सी दे रही आज वो चाल में।
हर्ष आनंद की जो निशानी लगे, बाँटती नेह देखी भरे थाल में।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण - 2

मेघ से बात ये पूछती है धरा, ताप लेती रहूँ क्यों भला बोल दो।
आग फूँके सदा गात मेरा जहाँ, बूंद दे के इसे शांति का झोल दो। 
वेदना के मिटें आज लावे सभी, कष्ट के घाव को प्रेम से घोल दो।
ताप ठण्डे करो कार्य मेरा यही, बंध सारे जलों के अभी खोल दो।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'




उदाहरण - 3

देखके वो भिखारी खड़ा आज है, और वो पात्र भिक्षा न ही खोलता। 
आज निश्चेष्ट देखा उसे द्वार पे, जो मरा सा पड़ा है न ही डोलता।
आँख आँसू भरी देह घावों लिये, कृष्ण का नाम बोले लगे तोलता।
द्वारिका धीश है मित्र मेरा कहे, नाम पूछा सुदामा यही बोलता।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Monday, June 14, 2021

नवगीत : कण्टक का ये गुच्छ : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
कण्टक का ये गुच्छ
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~~ 16/14

कण्टक का ये गुच्छ मिला है
भाग्य सराहे नित अर्पण
मेरे आँगन में फिर चीखे
कुंठित सा खण्डित दर्पण।।

आग उगलती साँझ तपे जब
त्रस्त उदर चूल्हा सुलगे 
आँतड़ियों ने शोक सुनाये 
घाव हृदय के सब छुलगे
कष्ट बरसते कुष्ठ तिमिर में
दग्ध चिताओं के बर्पण।।

सर्ग कहाँ ये पूर्ण हुए थे
शेष दहकती ज्वाला के
सर्प खड़े तक्षक से फण ले
रूप धरे गल माला के
रुष्ठ हुआ ये दीप नियति का
हर्ष गया करके तर्पण।।

बड़ पीपल कदली कीकर में
भेद नहीं पाया देखा
पुष्प लता की गंध दिखाती
हर मर्यादित सी रेखा
पीर सताए भार हृदय पर
पीठ गड़ा जब-जब कर्पण।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Saturday, June 12, 2021

मदिरा सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

मदिरा सवैया
संजय कौशिक 'विज्ञात'

शिल्प विधान 

मदिरा सवैया में 7 भगण (ऽ।।) + गुरु से यह छन्द बनता है, 10, 12 वर्णों पर यति होती है।
मापनी ~~ 
211 211 211 2, 11 211 211 211 2



उदाहरण-1

रूप शशांक कलंक दिखा, पर शीतल तो वह नित्य दिखा।
और प्रभा बिखरी जग में, इस कारण ही यह पक्ष लिखा॥
खूब कला बढ़ती रहती, तब जीत गई फिर चंद्र शिखा।
आँचल में सिमटी उसके, तब विस्मित देख रही परिखा॥ 

संजय कौशिक 'विज्ञात' 





उदाहरण-2

बाल विवाह कलंक हटे, तब एक समाज सुधारक से।
नेक सुता अधिकार मिले, फिर क्रंदन बंद उबारक से।
आज उड़ें नित अम्बर में, जय घोष हुए उस कारक से।
मोहन राय कहें जिनको, सब उत्तम वे नृप तारक से।।

 संजय कौशिक 'विज्ञात'




उदाहरण-3

क्रंदन पुष्प करे छल से, जब शूल चुभे उर आकर के।
और विलाप करे बहके, अपनत्व गुलाब हटाकर के।
कष्ट सदा वह ले हिय में, हँसता रहता नित गाकर के।
बाग उजाड़ दिये बिलखे, दृग मौन प्रचण्ड बहाकर के।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण 4

वृक्ष उखाड़ उजाड़ दिये, फिर बंदर शोर पुकार रहा।
और दशानन काँप गया, मुख वानर और हुँकार कहा।।
हास्य यहाँ पर कौन करे, यह सागर दे नग और बहा।
मच्छर सा वह वानर या, कर एक वहाँ छल दैत्य फहा।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



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उदाहरण-5

मात पिता प्रभु तुल्य रहें, अब इष्ट यही सुन देव भले।
कार्य कठोर बनें दिखते, हिय हर्ष पदार्थ समस्त पले।
वंचित जो जन हैं रहते, वह कष्ट प्रताड़ित हाथ मले।
सेवक पुत्र सदा बनते, घर स्वर्ग वही फिर कौन छले।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-6

पाटल कण्टक युद्ध हुआ, वह पाटल जीत गया तब से।
अश्रु प्रवाहित कण्टक के, फिर बाग उजाड़ बना जब से।
युद्ध भला कब ये कहता, सुन क्रंदन आज कहे सब से।
नेह सुवासित ये बगिया, महके सबके घर में अब से।

संजय कौशिक 'विज्ञात'




उदाहरण-7 

मुक्त हुए जन हैं भय से, यह वीर दया जब भी करते।
धर्म करें कुछ दान करें, लड़ युद्ध धरा गति पे मरते।
शौर्य दिखा बन रक्षक ये, धरणी नित निर्भयता वरते।
वीर पराक्रम सैनिक के, भुज श्रेष्ठ सदा हिय में भरते।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-8

बारहवीं परिणाम मिला, वह बालक बोल पिता कहता।
औषधि का अब ज्ञान मुझे, यह अर्जित है करना रहता।
क्रोधित देख पिता उस पे, मति मूढ़ विषाणु तुझे दहता।
कारण सोच उतीर्ण हुआ, फिर द्रोह उसी पर क्यों ढहता।


संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-9

घूँघट खोल कली हँसती, दिखती यह एक परी सम है।
उज्ज्वल सा तन श्वेत दिखे, तब देख कहाँ रति से कम है।
रक्तिम रूप धरे नित ही, पर चंचल यौवन में दम है।
आज नहीं भँवरा दिखता, इस कारण आँख हुई नम है।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-10

क्रोध जला कर भस्म करे, विकराल निशा पर रंग चढ़ा।
राख पुकार कहे उड़ती, तम का अपना अधिपत्य बढ़ा।
कालिख रौद्र बनी जबसे, यह रूप भयंकर देख मढ़ा।
वाद विवाद नहीं मिटता, तब वीर प्रकाश प्रमाद गढ़ा।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-11

दीप जले जब बिम्ब उठे, भयभीत करे भ्रम एक वहाँ।
काल्पिक आड़ प्रकाश करे, वह देख भला कब सत्य कहाँ।
व्याकुल सा हिय यूँ डरता, यह कौन चले अब संग यहाँ।
कम्पित सा जन हाँफ रहा, तम देख रहा जिस स्थान जहाँ।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-12

काग उड़े फिर चील वहाँ, नभ में मँडराकर शोर करें। 
और घृणा बढ़ती दिखती, यह नाक चढ़े सब देख डरें।
माँस पड़ा यह रक्त बहे, तब गंध बुरी उठ के उभरें।
क्षोभ बढ़े फिर व्याकुलता, द्रव नेत्र विदारक नित्य झरें।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'


उदाहरण-13 

नृत्य करें नटराज जहाँ, तब हर्ष अपार उमा खिलता।
दाँत तले वह ले उँगली, हिय उत्सुकतामय सा मिलता।
और अहा कह देख उन्हें, वह दृश्य मनोरम सा झिलता।
पुष्प करे फिर वर्षित वो, जब दिव्य दिखें ध्रुव भी हिलता।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-14


तत्व परे यह ज्ञान मिला, अब हर्ष विषाद उदास खड़े।
शांत हुई मति चित्त तभी, यह टूट विकार गए जबड़े।
ये क्षणभंगुर जीवन है, अनुशीलन वेद पढ़े रगड़े।
हर्ष विबोध कहे तब ही, मिटते सब काल बली झगड़े।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-15

मोहित चंचल पुत्र करे, जब वत्सल प्रेम वहाँ निकले।
डाँट कहे फिर मातृ सुने, तब हास्य कहीं पर क्रोध मिले। 
चुम्बन मात करे हँसती, तुतलाहट पे ममता फिसले।
मुग्ध पिता कुछ उत्सुक से, हिय हर्ष मनोहर दृश्य खिले।

संजय कौशिक 'विज्ञात'