Monday, June 14, 2021

नवगीत : कण्टक का ये गुच्छ : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
कण्टक का ये गुच्छ
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~~ 16/14

कण्टक का ये गुच्छ मिला है
भाग्य सराहे नित अर्पण
मेरे आँगन में फिर चीखे
कुंठित सा खण्डित दर्पण।।

आग उगलती साँझ तपे जब
त्रस्त उदर चूल्हा सुलगे 
आँतड़ियों ने शोक सुनाये 
घाव हृदय के सब छुलगे
कष्ट बरसते कुष्ठ तिमिर में
दग्ध चिताओं के बर्पण।।

सर्ग कहाँ ये पूर्ण हुए थे
शेष दहकती ज्वाला के
सर्प खड़े तक्षक से फण ले
रूप धरे गल माला के
रुष्ठ हुआ ये दीप नियति का
हर्ष गया करके तर्पण।।

बड़ पीपल कदली कीकर में
भेद नहीं पाया देखा
पुष्प लता की गंध दिखाती
हर मर्यादित सी रेखा
पीर सताए भार हृदय पर
पीठ गड़ा जब-जब कर्पण।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

11 comments:

  1. बहुत ही शानदार हृदयस्पर्शी नवगीत 👌👌
    व्यंजनाओं में लिपटे आकर्षक बिम्ब जो अपनी बात को प्रभावी ढंग से व्यक्त कर रहे हैं। शब्द और कथन में भी नावीन्य है....बार बार पढ़ने का मन करे ऐसी रचना। नमन आपकी लेखनी को गुरुदेव 🙏

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  2. बहुत ही शानदार भावाभिव्यक्ति । अनुपम बिंब बोलते से ।
    बहुत सुन्दर सृजन गुरूदेव जी ।

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  3. कुंठित सा खंडित दर्पण....👌👌
    उपमा और उपमेय का सुंदर समागम...👌👌

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  4. शानदार अलंकारों से अलंकृत रचना 💐💐💐

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  5. हृदयस्पर्शी सृजन।लाजवाब आदरणीय नमन गुरुदेव👏👏👌👌🙇🙇💐💐🙏🙏

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  6. बार बार पढ़ने के लिए आतुर करती अनुपम रचना।

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  7. अद्भुत अद्वितीय लाजवाब बिम्ब से सज्जित नवगीत

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  8. बहुत सुदंर नवगीत

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  9. अद्भुत अनुपम गीत

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  10. अति सुंदर गीत सृजन 👌💐💐💐
    https://hindisarijan.blogspot.com/2021/06/life-par-padhe-shandar-kavita-jindagi-ek-safar.html

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  11. अद्भुत अनुपम👌👌 अनूठे बिंबों को समेटे 🙏🙏🙏सादर नमन आदरणीय🙏🙏

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