Thursday, June 17, 2021

सुंदरी सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुंदरी सवैया
शिल्प विधान 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुन्दरी सवैया छन्द 25 वर्णों का है। इसमें आठ सगणों और गुरु का योग होता है। इसका दूसरा नाम माधवी है। केशव ने इसे 'सुन्दरी' और दास ने 'माधवी' नाम दिया है। केशव[1], तुलसी [2], अनूप[3], दिनकर[4] ने इस छन्द का प्रयोग किया है।

मापनी ~~

112 112 112 112, 112 112 112 112 2

उदाहरण-1

स्वर का तुझको जब ज्ञान नहीं, फिर व्यर्थ कहाँ मुख खोल रहा तू।
यह गायन दुर्लभ है सुनले, श्रम के बिन क्यों अब बोल रहा तू। 
पहले करले कुछ कर्म जरा, बिन कर्म कहाँ सब तोल रहा तू। 
स्वर कोयल बाग सुने सब ही, रस काग कहाँ यह घोल रहा तू।




उदाहरण-2 

गुरुदेव हमें वरदान मिले, हम शिक्षित दीक्षित होकर जाएं।
इस जीवन का हर युद्ध लड़ें, फिर जीत वहाँ पर यूँ हम पाएं।
यह ज्ञान किया अब दान हमें, हम जीवन में नित ही गुण गाएं।
जब आप कहो मिलना मुझसे, तब दौड़ सदा हम यूँ दर आएं।

संजय कौशिक "विज्ञात" 




उदाहरण-3

प्रभु आज गणेश सुनो विनती, अब दृष्टि दयामय से अपनाओ।
यह भक्त पुकार रहे तुमको, सुन टेर जरा मत यूँ तरसाओ।
बस ज्ञान इन्हें कुछ दान करो, यह लेखन सिद्ध करो अब आओ।
नित देकर नेक कृपा सबको, कुछ पावन सी करुणा बरसाओ।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

2 comments:

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी और उदाहरण गुरुदेव 🙏

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  2. जय हो आ.गुरुदेव जी
    नमन आप को और आप की लेखनी को
    बहुत ही सरलगता से समझाते हुए अमूल्य ज्ञान दिये है उदाहरण में।

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