Wednesday, May 26, 2021

नवगीत : रूठे जब प्रतिबिम्ब : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
रूठे जब प्रतिबिम्ब
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~16/16

रूठे जब प्रतिबिंब स्वयं के
कष्ट अलग से दर्पण झाँके
साक्खे करते दुःख सुबकते
मुँह को करके आड़े बाँके।।

अम्बर भी फट कर हँसता है
अम्ल वहाँ बरसा कर थोड़ा
आज ठहाके देता रिश्ता
बंध रुदन ने ऐसे फोड़ा
घोड़ा कोड़ी के भाव बिका 
अरबों में व्यापारी आँके।।

घाव सिसकते से घबराये
लांछन लेकर अपने सिर पर
फूट पड़े फिर बहते आँसू 
घोर विदारक क्रंदन लेकर
तनकर योग कुयोग बने हैं
हर्षित से क्षण जिसने फाँके।।

दुर्घटना यूँ और हुई तब
जब अधरों पर लटके ताले
रक्तिम गात फटा अंदर तक
देख सुआँ भी बदले पाले
छाले सारे ढाँप लिए यूँ
आज लगाके तन पर टाँके।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, May 23, 2021

खण्ड काव्य कैसे लिखें ? संजय कौशिक 'विज्ञात'



खण्ड काव्य कैसे लिखें ? 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

खण्ड काव्य लिखना कोई सरल कार्य नही साधारण कवि इसकी कल्पना भी नही कर सकते। यह एक साहित्यकार का तप है जो गहन अध्ययन, एकाग्रता और लेखन के प्रति समर्पण माँगता है। परंतु इस कठिन साधना का फल इतना हर्षदयक होता है जिसकी कल्पना उस साधक के अतिरिक्त कोई नही कर सकता। उसके लेखन कौशल को परिभाषित करता खंड काव्य उसे पूर्णता का आभास कराता है। परंतु बिना मार्गदर्शन ऐसी साधना रचनाकार को भ्रमित कर सकती है और एक चूक उसके पूर्ण परिश्रम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर सकती है इसी लिए किसी भी कार्य के प्रारंभ से पूर्व उसके विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर लेना अति आवश्यक है। तो चलिए जानते हैं खण्ड काव्य लेखन करते समय किन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि एक आकर्षक खण्ड काव्य की निर्मिति कर सकें।

आज-कल कवि परिवार में किसी न किसी द्वारा कोई न कोई पुस्तक प्रकाशित करवाना प्रचलन में हो गया है ऐसे में कुछ कवि खण्ड काव्य लिखना भी चाहते हैं इसका लेखन आकर्षित करता है पर कैसे लिखें ? इसका संतोष जनक उत्तर न हो पाने के कारण वे इस आकर्षण से अपनी लेखनी को सदैव वंचित पाते हैं 
ऐसे में आप सभी को यह पोस्ट पूर्णतया लाभान्वित कर देने वाली होगी ऐसा मेरा विश्वास है ....

खण्ड काव्य कैसे लिखें ? 
छंद निर्धारण :- 
खंड काव्य में एक आधार छंद और लय विश्राम छंद के मनमोहक संयोग से आकर्षण युक्त लय में साधते हुए लिक्खा जाता है (चाहें तो एक छंद भी रख सकते हैं) 
रस निर्धारण :- 
खण्ड काव्य में एक रस की प्रधानता होती है शेष अन्य रस भी उसके अंग अवश्य होने चाहिए।आलंकारों के प्रयोग से भाषाई सुंदरता मन को मोहित कर देने वाली होनी चाहिए।
चरित्र निर्धारण :- 
खण्ड काव्य में एक चरित्र को पकड़ कर उसके जीवन चक्र के महत्वपूर्ण प्रसंग को बढ़ाते हुए अपनी सशक्त कल्पना शक्ति के वर्चस्व को दर्शाना होता है। जिससे आपका पात्र निखर कर नायक के रूप में आ सके। 
भाषा तथा भाषा शैली निर्धारण :- 
इसकी भाषा हिन्दी है या अन्य प्रादेशिक है एक ही रखें (खिचड़ी प्रयोग से बचें) शैली क्लिष्ट या सरलता पर इतना ही कहा जा सकता है कि भावाभिव्यक्ति सुंदर और आकर्षक तथा साधारण जनमानस को समझ आ सके इतनी सुंदर होनी चाहिए । 
सर्ग निर्धारण :- 
इसमें सर्ग निर्धारण होना भी आवश्यक है बिना सर्ग निर्धारण के घटनाक्रम की खिचड़ी बन सकती है। इसमें 5 से 8 सर्ग होते हैं अंतिम सर्ग आधुनिकरण के साथ होना चाहिए।
जीवन के खण्ड का निर्धारण :- 
खण्ड काव्य नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि पात्र जो लिया गया है उसका पूर्ण जीवन चक्र न होकर खण्ड होना चाहिए। उस खण्ड के कल्पना यथार्थ के संयोग से अंत में आधुनिकीकरण के साथ समाप्त हो तो प्रशंसनीय रहेगा। जबकि आधुनिकता ने पूर्ण जीवन को भी स्वीकारा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता 
प्रवाह तथा अभिव्यक्ति :- 
एकात्मक अन्विति के साथ खण्ड खण्ड काव्य में विस्तार की स्वतंत्रता नहीं होती जबकि विशेष ध्यान रखने की बात यह है कि प्रारम्भ मध्य और अंत पूर्ण सशक्त तर्क संगत अभिव्यक्ति के साथ होना चाहिए। 
खंड काव्य का विषय :- 
आदर्श चरित्र, प्रताड़ित चरित्र, जीवन की घटना, प्रेरक प्रसंग या जीवन- दर्शन से संबंधित हो सकता है। और ध्यान रहे देश काल की व्यर्थ योजना से बचकर पात्रों की वेश भूषा आदि तथा उनके हाव भाव सहित कथा प्रसंग के माध्यम से वातावरण को स्पष्ट करें ... पात्रों की संख्या विस्तृत नहीं होनी चाहिए।
 शुभकामनाएं :-
खण्ड काव्य अथाह सागर की भाँति है जिसे कवि गागर में भरने का प्रयास करता है। इस गहन विषय को सरल शब्दों में आपको समझाने का प्रयास किया है। इस कार्य में कितनी सफलता प्राप्त हुई यह तो आप ही बता सकते हैं परंतु यदि आप तनिक भी लाभान्वित होते हैं तो मैं इसे अपने लेखन की सफलता मानूँगा। तो चलिए आप भी कमर कस लें इस साहित्यिक हवन कुण्ड में एक आहुति आपके कलम की ओर से भी हो....प्रारम्भ करेंगे तभी तो पूर्णता को प्राप्त करेंगे। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 💐💐💐

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Saturday, May 22, 2021

गीतिका और युग्ल : संजय कौशिक 'विज्ञात'

गीतिका तथा युग्ल
संजय कौशिक 'विज्ञात'


युग्म ~ शे'र
दो पांक्तियों का समूह जैसे मुखड़ा। 
गीतिका ~ विशेष हिन्दी - गजल
जिसमें उर्दू भाषा का प्रयोग न किया जाता हो।
प्रवाह ~ रवानी
काव्यमयी वह बहाव जो आत्ममुग्ध करता हो। 
पद ~ मिसरा
एक पंक्ति।
पूर्व पद ~ मिसरा ऊला
 युग्म की प्रथम पंक्ति को पूर्व पद कहा जाता है।
पूरक पद ~ मिसरा सानी
द्वितीय पंक्ति 
युग्म (शे'र) की द्वितीय पंक्ति को पूरक पंक्ति कहा जाता है।
पदान्त ~ रदीफ़
यह समांत शब्द अथवा प्रथम युग्म/मुखड़ा की दोनो पंक्तियों के अंत में लिखा जाता है। 
समान्त ~ काफिया
वह शब्द जो युग्म (शे'र) की प्रत्येक द्वितीय पंक्ति में पदान्त से पूर्व आता है।
मुखड़ा ~ मतला
गीतिका / हिन्दी ग़ज़ल का प्रथम युग्म (पहला शेर) जिसकी दोनों पंक्तियों में समांत और पदान्त (काफ़िया और रदीफ़) समान लिखे जाते हैं। 
मनका ~ मक़ता
गीतिका / हिन्दी गजल का अंतिम युग्म/ शे'र जिसमें  रचनाकार का उपनाम लिखा हुआ होता है।
मापनी ~ बह्र (मात्राओं का निश्चित क्रम)
छंद की वह निश्चित लय जिस पर गीतिका / हिन्दी गजल लिखी जाती है।
स्वरक ~ रुक्न
गण आदि की सूक्ष्म पद्धति के मुख्य घटक स्वरक अथवा स्वरक (रुक्न) कहा जाता है। 
स्वरावली ~ अरकान
स्वरक का निश्चित अंतराल के पश्चात पुनः प्रयोग से निर्मित मापनी या स्वरक के बहुवचन को स्वरावली (अरकान) कहा जाता है
मात्रा भार ~ वज़्न
किसी शब्द के मात्रा क्रम (संख्या) को मात्रा भार कहा जाता है 
कलन ~ तख्तीअ
मात्रा गणना की वह पद्धति जिसमें जो निर्णय करती है कि मात्रा भार समान अंतराल के पश्चात आये।
मौलिक मापनी ~ सालिम बह्र
वह मापनी जिसके मूल स्वरूप को ज्यों का त्यों लिया गया हो।
मिश्रित मापनी ~ मुरक्कब बह्र
वह मापनी जो दो मूल छंद की मापनी के मिश्रण से बनी हो उसे मिश्रित मापनी कहा जायेगा।
अपदान्त गीतिका ~ ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल
जिस गीतिका (हिन्दी गजल में पदान्त (रदीफ़) न हो उसे अपदान्त गीतिका कहते हैं 
अकार योग ~ अलिफ़ वस्ल
दो शब्दों की मात्रा को जोड़कर पढ़ने से होने वाले परिवर्तन को अकार योग कहते हैं 
पुच्छ लोप ~ पद के अंतिम लघु का लोप
मात्रा गिराने की प्रक्रिया को पुच्छ लोप कहते हैं 
धारावाही गीतिका ~ मुसल्सल ग़ज़ल
जिस गीतिका (हिन्दी ग़ज़ल) के प्रत्येक युग्म (शे'र) का विषय अलग - अलग होता है 
गीतिकाभास ~ ग़ज़लियत
चयनित प्रतीक और बिम्ब के माध्यम कहन श्रेष्ठ हो, अगर ये न हों तो कथन सच्चा और कड़ुवा हो जिससे श्रोता को लगे कि तुझ पर कहा है 
निष्कर्ष :- सबको अपने ऊपर आता दिखे वह युग्ल श्रेष्ठ होता है।
समान्ताभास ~ ईता
यह काफिये का दोष होता है जिसमें 2 ऐसे शब्द जो सानुप्रास न हों उन्हें बढ़ाकर काफ़िया बनाना 
वचनदोष ~ शुतुर्गुर्बा
एक ही शे'र / युग्म में जब दो सम्बोधन जैसे आप और तुम दिए जाएं तो यह शुतुर्गुर्बा / वचन दोष कहलाता है
पदान्त समता दोष ~ एबे-तकाबुले-रदीफ़
प्रथम युग्म (मतले) से पृथक पदान्त के अंतिम स्वर प्रथम पंक्ति में लग जाएं तो यह दोष उत्पन्न हो जाता है।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, May 16, 2021

वैवाहिक वर्षगाँठ-बधाई गीत : संजय कौशिक 'विज्ञात'


वैवाहिक वर्षगाँठ 
बधाई गीत (माता पिता को समर्पित)
स्वर्ण जयंती 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी ~ 16/16

स्वर्णिम क्षण की संदूकों से 
स्वर्ण जयंती बाहर आई
मात-पिता के हर्षित मुख पर 
पावन बासंती सी छाई।।

स्मृति पटल हुआ कुंदन चमके
मुग्ध मंत्र बिन ये घर सारा 
जयमाला फेरे मुस्काये
उन वचनों का खोल पिटारा
हर्ष हृदय के खुलकर खिलते 
कुनबा दे यूँ श्रेष्ठ बधाई।।

पावन ज्योति अखंड बनी माँ 
जिनसे महका घर का मंदिर
भरा तेल से दीप पिता जी 
यूँ चमका कुल का संवत्सर 
नेह प्रेम की लौ अद्भुत से 
मिटी सदा इस घर की खाई।।

बाँट दिया घर बेटों में सब
बेटी को भी ससुराल दिया 
निज श्रम की अंतिम बूंदों से
सींच नेह सब खुशहाल किया
अपनी पीर कभी अधरों तक
दोनों ने ही नही दिखाई।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Friday, May 14, 2021

नवगीत : हिचकी में बसती सौगातें : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
हिचकी में बसती सौगातें
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~16/14

हिचकी में बसती सौगातें 
मत पूछो कितनी गहरी
नभ मण्डल से श्वास उतरती
हिय आँगन जितनी गहरी।।

शुभ्र वर्ण की उज्ज्वल आभा
लज्जित ज्यूँ श्वेत जुन्हाई
कृष्ण पक्ष की घात सही जब
जागी कुछ पीर पराई
गाई तम ने चमक चाँदनी
रात लगी बितनी गहरी।।

एक मिलन फिर शेष आस का
ये संदूक पिटारा है
जो हिय को पतझड़ की ऋतु में
देता नेक सहारा है 
स्मृति के अवशेषों की बगिया 
भले लगी छितनी गहरी।।

जीवन यात्रा पावन गङ्गा
लिखती शोध कहानी है
निर्मल उज्ज्वल अन्तस् तक की
रहती शुद्ध निशानी है
गंधक ले गहराई उबले
प्रीत बसी इतनी गहरी।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, May 5, 2021

नवगीत : गाओ प्रिये गीतिका अनुपम : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
गाओ प्रिये गीतिका अनुपम
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी 16/14

गाओ प्रिये गीतिका अनुपम
मैं ये वाद्य बजाऊँगा 
श्रेष्ठ मापनी आप निभाओ
मैं सुर मधुर सुनाऊँगा।।


सात सुरों की बगिया खिलकर
कंठ तुम्हारे में महके
कोयल जैसी मीठी बोली 
दिशा दिशा से फिर चहके
हर्षित हिय आँगन हो पुलकित
मैं वो राग उठाऊँगा।।


और यमन से राग प्रवाहित
नेह अंकुरित फूटेंगे
प्रीत मल्हारी मेघ गर्जना
करते से दुख चूटेंगे
लय तारों की ले नक्षत्री
मैं यूँ मांग सजाऊँगा।। 


साधारण सुर दृश्य मनोरम
करता ये कल्याण दिखे
रागों के तरकश से चलता
मोह राग का बाण दिखे
प्रकट चाँदनी मुख पर खिलती
जिसे देख मुस्काऊँगा।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'

Monday, May 3, 2021

नवगीत : संकेत : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
संकेत
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 16/14

एक काग की काँव काँव ने 
प्रियतम का संदेश दिया
कूद कूद कर मुंडेरी पर
प्रीत मिलन संकेत किया।।

हर्षित हिय का गूँजे कलरव
कोयल मधु ध्वनि गान करे
पंख खोल ज्यूँ तितली नाचे
दर्पण भी पहचान करे
शीतल बहती पुरवाई ने
आलिंगन सा पर्श लिया।।

चाव-चाव में करे रसोई
रोटी चकले पर मुड़ती
मस्त हुई वह खुशियाँ बाँटे
मटके लोई भी गुड़ती
इसका भी कहना है इतना
आएंगे सुन आज पिया।।

कह साड़ी का चढ़ता पल्लू
मिलना है उपहार तुम्हें
लाएंगे परदेस पिया अब
जाँचेंगे शृंगार तुम्हें 
छोंक कोपते गीत सुनाते
साँझ महकती केसरिया।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, May 2, 2021

आल्हा /वीर छंद : शिल्प विधान : उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात


आल्हा /वीर छंद 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

आल्हा मात्रिक छंद सुहावन, वीर लिखें रस पावन काव्य।
गाल लगा से जोड़ त्रिकल को, श्रेष्ठ यही लय उत्तम श्राव्य।।

सौलह पंद्रह पर यति रखना, ऊँचे सुर में हो टंकार।
शेर दहाड़ भरे जंगल में, हाथी लुढकें एक हजार।।


अतिश्योक्ति अलंकार इस छंद का सौंदर्य निखारता है। मात्रा भार 16/15 रहेगा। विषम चरण में 16 मात्रा सम चरण में 15 मात्रा चार चरणों का यह छंद वीर रस में अत्याधिक प्रभावी माना जाता है। तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है। इसकी सुंदर गेयता के लिए सुंदर और आकर्षक लय का होना बहुत आवश्यक होता है। जो जरा सी सावधानी से साधी जा सकती है।

*आल्हा छंद* 

इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं। कथ्य अधिकांशतः ओज भरे ही होते हैं।
वीर (आल्हा) छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है।
 *विषम चरण का अंत*- 
गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या लघु लघु गुरु (।।ऽ) या गुरु लघु लघु (ऽ ।।) से  करना अनिवार्य है 
*सम चरण का अंत* - 
गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है।

*वीरांगना अवंतीबाई* 
मापनी 16/15

देख अवन्तीबाई रानी
अंग्रेजों का अत्याचार।
लाल नयन कर रण में कूदी
करती सौ-सौ नर संहार।। 

1
राव जुझार सुता कहलाई
राजा लक्ष्मण का विश्वास।
काली जैसे युद्ध लड़े वो 
ज्वाला फूंके मानो घास।।
कितनो की छाती बैठी थी
सुन रणचण्डी की ललकार ...

2
दो पुत्रों को जन्म दिया फिर
पुत्र प्रजा के माने लाख।
क्रूर बने उन अंग्रेजों को
फूंक किया पल भर में राख।।
शौर्य दिखा विद्युत सी चलती
काटे जाती सिर तलवार ... 

देश स्वतंत्र कराने उतरी 
रण का सागर माने धाक
बन पहली आंदोलनकारी
काटी सब रिपुओं की नाक 
और हुतात्म हुई कुछ ऐसे 
शांत सुनामी बंद प्रहार ...

संजय कौशिक विज्ञात

गीत लिखने के कुछ नियम : संजय कौशिक 'विज्ञात'



गीत लिखने के कुछ नियम 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

काव्य विधाओं में सबसे आकर्षक विधा गीत कहलाती है, गीत की संगीत के साथ सस्वर प्रस्तुति श्रोता के कर्णमार्ग से हृदय पर सरलता से अंकित हो जाती है। संगीतबद्ध गीत आकर्षक होता है और मंत्रमुग्ध कर देने वाले राग से सुसज्जित हो तो गीत का अपना ही आकर्षण होता है।
स्वर और लय-ताल बद्ध शब्दों को गीत कहते हैं। गीत में दो प्रकार के शब्द प्रयोग में लाए जाते हैं। एक सार्थक जैसे साग , राग जिनका कोई न कोई अर्थ होता है। और दूसरे निरर्थक जैसे वाग, ताग, खाग, इत्यादि का कोई अर्थ नहीं होता है।

आधुनिक काल में गीत के कई प्रकार हैं जो बहुत प्रचलित है। जैसे ध्रुपद, धमाल, ख्याल, ठुमरी, टप्पा, तराना, चतुरंग, लक्षण गीत, भजन, कव्वाली, दादरा, सरगम या स्वर मालिका आदि। स्वर, पद और ताल से युक्त जो गान होता है वह गीत कहलाता है।
अब इस चर्चा को यहीं विराम देते हुए गीत के प्रारूप पर ध्यान केंद्रित कर बताना चाहूँगा कि एक गीत में मुखड़ा/ स्थाई/ टेक होती है जो लगभग 2 चरण से 5 चरण कई बार 8 चरण में भी लिखा जाता है। जबकि सामान्यतः 2 चरण या 4 चरण अधिकांशतः देखा जाता है। 
मुखड़े / स्थाई/ टेक के पश्चात इसमें अंतरा/कली लिखे जाते हैं यह भी 4 चरण से 8 या 10 चरण तक हो सकते हैं।
अन्तरा / कली के अंत में पूरक पंक्ति/ तोड़ का प्रयोग किया जाता है। जो मुखड़ा/ स्थाई/ टेक के समान तुकांत जैसा ही होता है यह अंतरा/ कली के तुकांत/समतुकांत से पृथक होता है इसे अंत में प्रयोग किया जाता है।

इस प्रकार गीत का प्रारूप बनता है। गीत को भी बिम्ब के माध्यम से लिखा जाता है इसमें भी प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग अनेक बार देखा जाता है पर अधिकांशतः गीत में प्रतीकात्मक शैली और बिम्ब का आभाव होता है, साधारण शब्दों में गीत सपाट कथन की परम्परा को निभाता है यह सभी रसों में लिखा जाता है गीत में भावपूर्ण प्रस्तुति होती है। गीत एक विषय पर केंद्रित हो सकता है और समसामयिक विषय हो सकते हैं। गीत अद्भुत शब्द शक्ति (वाचक, व्यंजक और लक्षण) से सुसज्जित होते हैं। गीत को अतिरिक्त व्याख्यान से बचाना आवश्यक होता है। और 2 से 4 अन्तरे श्रेष्ठ और अच्छे गीत की पहचान होते हैं। 
सामान्यतः गीत की भाषा पर भी हल्का सा प्रकाश डाल देना आवश्यक समझता हूँ। हम जिस भाषा में गीत लिख रहे हैं अंत तक उसी का निर्वहन करेंगे तो उत्तम भाषा का गीत होगा। अन्यथा अन्य भाषा के शब्द मिला कर अपनी भाषा को खिचड़ी भाषा बनाने से नहीं रोक पायेंगे। इस लिए अन्य भाषा के शब्द प्रयोग से बचना चाहिये। कुलमिलाकर कहने का अभिप्राय यह है कि *एक गीत एक भाषा*। 
गीत में सार्वभौमिक सत्य प्रमाणिक तथ्य जो हैं वही रहेंगे उनमें बदलाव नहीं किया जा सकता। सामयिक विषय के साथ-साथ सामाजिक बिषय भी गीत का विषय हो सकते हैं वह आपके भाव रस पर भी निर्भर करता है। गीत के प्रारूप को इस गीत के माध्यम से समझते हैं 
         ◆ संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण स्वरूप चार चरण तुकांत समानान्त के एक गीत को ले रहा हूँ पाठक इसे पढ़ कर सरलता से समझेंगे और लिखेंगे 
सर्वप्रथम गीत का 

*मुखड़ा/स्थाई/टेक देखें दो पंक्ति में ...*

हमारे गीत जीवन में हमें कहना सिखाते हैं 
लिखें जिस मौन को ताकत वही अनुपम बनाते हैं 

1 *अंतरा/कली जितनी पंक्ति लिखेंगे अंतरा कली में सबके तुकान्त समानांत रहेंगे।*
1
दिखाई दृश्य पर कहदें निखर के बिम्ब बोलेंगे
सृजन की हर विधा के ये अलग ही भेद खोलेंगे 
मगर नवगीत की सुनलो बिना ये बिम्ब डोलेंगे
अलंकारित छटा बिखरे बनाकर गूंज तोलेंगे 

*पूरक पंक्ति/ तोड़ ... इस पंक्ति का तुक मुखड़ा/स्थाई/टेक के समान आयेगा*
सदा प्रेरित करेंगे ये जहाँ सोते जगाते हैं।
*मुखड़ा/स्थाई/टेक दोहराव होता है*
हमारे गीत जीवन में हमें कहना सिखाते हैं 

2 *अंतरा/कली जितनी पंक्ति लिखेंगे अंतरा/कली में सबके तुकान्त समानांत रहेंगे।*
2
प्रकृति की गोद में रख सिर यहाँ से सीख जायेंगे।
सभी ऋतुएं दमक उठती मयूरा उर नचायेंगे।
कभी तो सिंधु सा स्वर ले लहर के साथ गायेंगे।
उतर के भूमि पर तारे बड़े ही खिलखिलायेंगे।

*पूरक पंक्ति/ तोड़ ... इस पंक्ति का तुक मुखड़ा/स्थाई/टेक के समान आयेगा*
महकती है तिमिर में जो चमक जुगनू दिखाते हैं 
*मुखड़ा/स्थाई/टेक दोहराव होता है*
हमारे गीत जीवन में हमें कहना सिखाते हैं 

                *संजय कौशिक 'विज्ञात'*