गीत
कोरोना का बखेड़ा
संजय कौशिक 'विज्ञात'
करोना का बखेड़ा।
प्रकृति का थपेड़ा।। स्लोगन
स्थाई 👇
कोरोना का देख बखेड़ा।
कुदरत हँसती मार थपेड़ा।।
1
मानव निर्मित कहर कहूँ या
एक प्रयोग पड़ा है उल्टा
भूखा मानुष बना भेड़िया
जिसने जीवन सारा पल्टा
मांस जीव का खाता नित ये
छोड़ रहा है लड्डू पेड़ा।।
2
हाथी ताण्डव करता दिखता
सूंड फँसी हो चींटी मानो
उस चींटी से भी लघु अणु से
विश्व चकित सा दिखता जानो
और दवा सब खोज रहे हैं
जीवन संचित ज्ञान उधेड़ा।।
3
बंद घरों में सभी आदमी
सहमे से हैं डरे हुए से
सशक्त अणु ये अजगर जैसा
कंपन से सब भरे हुए से
गाँवों में अवसर पाते ही
धोक चले सब अपना खेड़ा।।
4
लौट चुके उस पगडण्डी पे
गाँवों का आधार रही जो
पुत्र-पिता पति भाई पाये
हँसी खुशी परिवार रही जो
रत्न प्राप्त से राग मिलन का
कौशिक मन वीणा ने छेड़ा।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुन्दर और सामयिक गीत
ReplyDelete