नवगीत
व्यथित व्यंजना
संजय कौशिक 'विज्ञात'
इक व्यथित सी व्यंजना फिर
देख हँसती आज दर्पण।।
1
और वीणा आज फिर से
इस तरह खण्डित हुई सी
तार सारे दिख रहे हैं
मौन स्वर मण्डित हुई सी
वंदना के श्लोक गूँजे
भाव पूजा श्रेष्ठ अर्पण।।
2
फिर अधर जब मौन बोले
शब्द वो गुंजित हुआ सा
दूर अन्तस् से छँटा वो
छा रहा था जो कुहासा
भावना बिन ताल ठोंकी
राग में घुलता समर्पण।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteभावना बिन ताल ठोकी, क्या बात है ।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसुन्दर नवगीत
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteउत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन
🙏🙏🙏🙏