नवगीत
मधुमासी अभिनंदन
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~ 16/14
पतझड़ से अन्तस् कानन में,
मधुमासी सा अभिनंदन।
दृष्टि पटल से पलक उठी जब,
गिरती सी करती वंदन।
1
सूखी खुशियाँ खिली दिखी जब,
महकी कलियाँ मुस्काई।
देख हँसी तो अन्तस् मन में,
सरसों सी थी तरुणाई।
मस्त तरंग प्रकम्पन कहते,
हृदय स्पर्श कर मदमाई।
लटक रही थी ब्याल जहाँ पर,
महक रहे वो सब चन्दन ...
2
यौवन धार गुरुत्वाकर्षण,
आकर्षक सा अवलंबन।
कंटीली सी पीर समय की,
मिटती सब बिना विलंबन।
पवमान लिए उपहार खड़ा,
और जड़ा अधरों चुम्बन।
लाखों झोंके करते देखे,
बहुत कलह सा फिर क्रंदन।
3
कलकल गूंजे बहते झरने,
रक्त धमनियाँ दौड़ रही।
सांय सांय की आवाजें थी,
समझ नासिका छोड़ रही।
नेत्र विचारक बन कर बैठे,
आस उन्हें कुछ जोड़ रही।
प्राणायाम हृदय तक उतरा,
बाहर काबू से स्पंदन ...
संजय कौशिक 'विज्ञात'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2020) को "नेह का आह्वान फिर-फिर!" (चर्चा अंक 3660) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
बहुत सुन्दर गीत।
ReplyDeleteश्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुंदर 👌👌👌
ReplyDeleteलाजवाब शब्दचयन ,बिम्ब और कथन ...बहुत ही प्रेरणादायक सृजन । बहुत बहुत बधाई आदरणीय 💐💐💐💐
Adbhut
ReplyDeleteवाह वाह बेहतरीन बिंबों से सुसज्जित नवगीत
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteअद्भुत शब्द चयन ,लाजवाब बिम्ब ,मनमोहक नवगीत 👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों का चयन और नवगीत का सफर सुन्दर समायोजन करता कहने
ReplyDelete👍👌🙏🙏
ReplyDelete👍👌🙏🙏
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