नवगीत
मोहिनी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~ 13/13
भावन अप्सरा कोई,
मादक मोहिनी आई।
तीर कमान वो छोड़ें,
भौंह निशान सी पाई।
1
नेत्र बड़े मनोहारी,
और सधे प्रहारों से।
रूप परी दिखाये तो,
आह भरें विचारों से।
अक्षर वर्ण सम्भाले,
आकर गीतिका गाई ....
2
वो मिलती निशा ऐसी,
आकर चांदनी बोले।
शीतल सी व्यहारी थी,
घातक सा पयो घोले।
मंडल कांति तारों की,
गूंज विराट सी छाई।
3
पीपल कोकिला कूकी,
अन्तस् प्रेम सा फूटा।
और तरंग छोटी थी,
देख प्रभाव जो लूटा।
ओझल सी हुई देखी,
नाम पुकार मुस्काई।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
आदरणीय विज्ञात भाई साहब के नवगीत सदैव नवगीत लिखने वालो के लिए प्रेरणा स्रोत रहते है
ReplyDeleteनवगीत ,भाव और बिंब ,आपका सानी नहीं कोई ।💐👌👌बिंब आपके जैसे पकड़ना हम जैसों के लिए कुछ मुश्किल है।😊
ReplyDeleteनवगीत ,भाव और बिंब ,आपका सानी नहीं कोई ।💐👌👌बिंब आपके जैसे पकड़ना हम जैसों के लिए कुछ मुश्किल है।😊
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन!🌷🙏🌷
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
ReplyDeleteबहुत ही शानदार जानदार आपकी मोहिनी रचना आदरणीय
ReplyDeleteअद्भुत सृजन
ReplyDeleteपीपल कोकिला कूकी,
ReplyDeleteअन्तस् प्रेम सा फूटा।
और तरंग छोटी थी,
देख प्रभाव जो लूटा।
ओझल सी हुई देखी,
नाम पुकार मुस्काई।
वाह वाह बहुत खूब बहुत सुन्दर सृजन गुरु देव
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाहहह आदरणीय 👏👏👏👏👏बहुत शानदार सृजन👌👌👌👌
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब सृजन....