Thursday, February 24, 2022

नवगीत : मीठा राग मल्हार : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
मीठा राग मल्हार 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी 
स्थाई/पूरक पंक्ति 12/11
अंतरा 12/12 

फाल्गुनी गाती फिरे 
मीठा राग मल्हार
यूँ अबीरी साँझ का
गूंजे आज प्रचार।।

पंखुड़ी भी पुष्प की
ठोकती है तालियाँ 
प्रीत की गाथा यही
बोलती हैं बालियाँ
यूँ बयारी नृत्य का
देखा नव्य प्रकार।।

मस्त नाचे ये धरा 
गीत के आभार पे 
अम्बरों ने पुष्प से 
बात बोली सार पे 
भीगते से गात में 
दौड़ा प्रेम प्रसार।।

रंग की बातें नई 
यूँ वधू के मध्य में 
हास्य गूँजे मोहिनी 
पाश बाँधे वृध्य में 
कौन ऐसे रोक ले
मारे देख प्रहार।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

15 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    शानदार नवगीत आकर्षक बिम्बों के साथ 💐💐💐

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  2. बहुत सुंदर गुरुदेव की रचना और लेखनी को नमन ।

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  3. वाह वाह 👌 बहुत सुंदर
    नमन गुरु देव

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  4. बहुत सुंदर बेहद खूबसूरत बिंबों के साथ 👍👍👍🌷🙏
    प्रणाम गुरुदेव 🙏🌷

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    1. सादर नमन गुरुदेव 🙏🙏
      बहुत सुंदर नवगीत 👌👌

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  5. बहुत ही सुन्दर मीठा नवगीत सादर प्रणाम

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  6. बेहद खूबसूरत नवगीत आदरणीय 👌👌👌👌

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  7. फाल्गुनी रंगों से सराबोर सुंदर नवगीत,
    आकर्षक बिंब और कथन।
    सुंदर श्रृंगार नवगीत।

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  8. मन की देहरी पर फाल्गुन की दस्तक का आभास कराता नवगीत👌👌👌👌👌👌

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  9. बेहतरीन रचना आदरणीय ।

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  10. सादर प्रणाम गुरुदेव 🙏
    आकर्षक बिंबो से सजा हुआ बहुत सुंदर नवगीत 👌

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  11. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (26-02-2022 ) को 'फूली सरसों खेत में, जीवित हुआ बसन्त' (चर्चा अंक 4353) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  12. पंखुड़ी भी पुष्प की
    ठोकती है तालियाँ
    प्रीत की गाथा यही
    बोलती हैं बालियाँ... वाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय लिखा सर।
    सादर

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