Sunday, September 12, 2021

नवगीत : याद तभी हिन्दी आई : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत
याद तभी हिन्दी आई
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 16/14

राग मयूरा देख व्यथित सा 
याद तभी हिन्दी आई।
दोनों थक के रोते दिखते
आँखें भर-भर छलकाई।।

आधे से स्वप्नों में लरजे
वाग्देवी की अनुकम्पा
पंचम सुर का गीत अधूरा
पुष्प सुगन्धित बन चम्पा
पंख खुले पर विचलित हिय से
चाल मंद ये भाषाई।।

ढोल राज भाषा का बजता
गूँजे सुर ज्यूँ मोरों के
वीणापाणि उपासक सिसकें
गुण सुनके फिर ओरों के
मेघ घटा बन बरसी वर्षा
देख कहाँ तक थम पाई।।

राष्ट्र पखेरू मोर तड़पता
हिंदी इस दुख से व्याकुल
अच्छे दिन का हरण किया जब
ढूँढ़े दृग वो कित पांसुल
नाच विषय चिंतन मंथन का
बिन मक्खन की चिकनाई।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

6 comments:

  1. हिंदी और मोर को अनोखे अंदाज में जोड़ा गया है...बहुत ही आकर्षक और प्रेरणादायक रचना 👌
    नूतन बिम्बों का अनुपम प्रयोग ....नमन आपकी लेखनी को गुरुदेब 🙏

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  2. अति सुंदर सादर नमन

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  3. "दोनों थक के रोते दिखते"
    हिंदी राज भाषा और मयूरा राष्ट्रीय पक्षी दोनों की दारुण दशा पर शानदार प्रतीकात्मक शैली का सृजन।
    नव प्रतीक नव व्यंजनाएं ।
    अद्भुत सृजन।

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  4. वाह नूतन बिम्ब से शोभित शानदार नवगीत👌🙏

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  5. बहुत ही सुन्दर एक नये अंदाज में नवगीत बहुत बधाई 🙏🙏👌👌

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  6. शानदार नवगीत गुरूदेव । बधाई

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