Sunday, March 8, 2020

गीत द्रुपद सुता तू शस्त्र उठाले संजय कौशिक 'विज्ञात'





गीत 
द्रुपद सुता तू शस्त्र उठाले
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~~16/14 

द्रुपद सुता तू शस्त्र उठाले, 
इतना ही समझायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी, 
कैसे तुम्हें बचायेंगे।

1
शील स्वभाव तजो पांचाली 
स्वाभिमान के पाथ बढ़ो।
नीच कर्म के अत्याचारी, 
लेकर कर तलवार गढ़ो।
कंटक मार्ग प्रशस्त स्वयं हो,
गीता का वह सार पढ़ो।
गुप्त रूप से सम्बल इतना, 
आज तुम्हें दे जायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी, 
कैसे तुम्हें बचायेंगे।

2
सौम्य रूप से ज्वाला बनकर,
दुष्टों का संहार करो।
विजय पताका लहरे ऊँची, 
परिवर्तित ये हार करो।
रक्षित होगी जब मर्यादा, 
काली रूप विचार करो
अगर नहीं कर पाये रक्षण, 
मन ही मन पछतायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी, 
कैसे तुम्हें बचायेंगे।


3
भेद युगांतर बेड़ी फांसे, 
कर्म प्रधान जगत सारा।
लहरों को जो चीर सके फिर, 
सरल समय की वह धारा।
श्रेष्ठ मनोबल माध्यम युक्ति, 
हृदय शक्ति दे विस्तारा।
पार्थ सुनी जो श्रेष्ठ उक्तियाँ, 
सुनो उन्हें वे गायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी, 
कैसे तुम्हें बचायेंगे।

4
व्यर्थ बहाओ मत यूँ आँसू, 
मत अपना अपमान करो।
सभा प्रजा ये है अंधों की, 
शिव ताण्डव का ध्यान करो।
शौर्य वंश की पटरानी हो, 
मौन गरल मत पान करो। 
ईष्ट कहे ये शपथ दिलाकर,
मुरली नहीं बजायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी, 
कैसे तुम्हें बचायेंगे।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

10 comments:

  1. अब कृष्ण नहीं आयेंगे! स्वयं की रक्षा के लिए स्वयं को हथियार उठाने होंगे , यथार्थ कथन, सुंदर आह्वान करती अनुपम रचना ।

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  2. अत्यंत ओजपूर्ण,प्रभावी सृजन सर👏👏👏👏👏👌👌👌👌👌👌

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  3. व्यर्थ बहाओ मत यूँ आँसू,
    मत अपना अपमान करो।
    सभा प्रजा ये है अंधों की,
    शिव ताण्डव का ध्यान करो।
    शौर्य वंश की पटरानी हो,
    मौन गरल मत पान करो।
    वाह वाह बहुत खूब लाजवाब सृजन गुरु देव

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  4. बेहतरीन।
    --
    रंगों के महापर्व
    होली की बधाई हो।

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