गीत
विरोधाभास।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
पैरो से तो धरा छीन ली
अंबर छीन लिये।
1
बने हौसले टूट रहे हैं,
कबका सूख गये।
छत्ते ने मधु मक्खी निगली,
हरियल रूख गये।
जुगनू से ले चमक आदमी,
रूप मयूख गये।
कनक चबाये नव जीवन से,
मारे भूख गये।
दूध जहर पी साँप पालते
मरते दीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
2
शब्द रसिक से खाते कविता,
समझा सार रहे।
सागर से पर्वत को जाती,
नदिया धार बहे।
अर्थ अनर्थ किये गागर के,
ज्ञानी हार कहे।
श्रेष्ठ हुई ये उत्तम विदुषी
बोली वार सहे।
छंद जड़ित फिर मधुर नमक के,
बाजे बीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
3
हुआ मधुर कुछ कडुवा सागर,
दिखता आज यहाँ।
पंगु चढ़े मन पर्वत सीढ़ी,
गिरते देख कहाँ।
दौड़ रहे तन मुर्दे लहरों,
चारों और जहाँ।
नेत्रहीन अब ज्योतिष दिखता,
कहते मूढ़ यहाँ।
केत मृत्यु दे अमर कराता,
घर जो मीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
4
विरह वेदना व्याकुल मन की,
भूली बात सभी।
शिशिर चांदनी शीतल जलती,
तम की घात तभी।
तारे चमकें कहीं धरा पर,
खाली नभ वलभी।
शोधित होती मन की बाते,
आये रास कभी।
सूरज चंदा विष-पय वर्षण,
हो गमगीन लिये।
भरे समंदर गहरे जा कर
मोती बीन लिये।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
शब्द रसिक से खाते कविता,
ReplyDeleteसमझा सार रहे।
सागर से पर्वत को जाती,
नदिया धार बहे। वाह अद्भुत लेखन 👌👌
आत्मीय आभार अनुराधा जी
Deleteगजब 👌,
ReplyDeleteविरोधात्मक शैली में व्यंग्य परोसता गीत
बहुत सुन्दर प्रयोग...
लता सिन्हा ज्योतिर्मय
आत्मीय आभार लता जी
Deleteशानदार सर
ReplyDeleteआत्मीय आभार पुष्पा जी
Deleteबहुत खूब सर जी
ReplyDeleteआत्मीय आभार बोधन जी
Deleteवाह
ReplyDeleteआत्मीय आभार त्रिपाठी जी
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ReplyDeleteशब्द रसिक से खाते कविता,
समझा सार रहे।
श्रेष्ठ हुई ये उत्तम विदुषी
बोली वार सहे।
वाह आदरणीय अनुपम प्रस्तूति👌👌👌👏👏👏
सुंदर छंद सृजन हुए विरोधाभास लिये
लेखनी ने प्रतिदिन आपकी नव नव रुप लिये।
आत्मीय आभार पूजा जी
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ReplyDeleteबहुत सुंदर छंद विरोधाभास के लिए आदरणीय बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम जी
Deleteअनुपम सृजन
ReplyDeleteआत्मीय आभार राधा जी
Deleteबहुत सुंदर अनुपम गीत
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻
आत्मीय आभार सविता जी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना सर। अनुपम सृजन।
ReplyDeleteआत्मीय आभार सरला जी
Deleteवाह एक नया अंदाज ,उल्टी गंगा बहाने का
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनिता जी
Deleteवाह गजब!!
ReplyDeleteसचमुच सब विरोधाभास।
बहुत शानदार सृजन।
आत्मीय आभार कुसुम जी
Deleteबहुत गहरे भाव👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार जी
Deleteविरोधाभास का इतना शानदार प्रयोग वो भी गीत में पहली बार पढ़ा ...लाजवाब सृजन 👌👌👌एक अनोखे उत्तम सृजन की बहुत बहुत बधाई आदरणीय 💐💐💐💐 सादर नमन 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार नीतू ठाकुर जी
Deleteअनुपम नवगीत।
ReplyDeleteआत्मीय आभार चोवा राम जी
Deleteविरोधाभास में वर्णित विभिन्न प्रसंग एक श्रेष्ठ साहित्य साधक का परिचायक है जो इस रचना में परिलक्षित होता है।
ReplyDeleteअशेष मंगलकामना।
आत्मीय आभार प्रधान जी
Deleteउत्कृष्ट सृजन
ReplyDeleteआत्मीय आभार अतिया जी
Deleteअनुपम नवगीत बहुत गहरे भाव👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार जी
Deleteव्यंगात्मक लहजे में अपनी बात करता बेहतरीन नवगीत ,, साधुवाद ।
ReplyDeleteआत्मीय आभार सलिल जी
Deleteअत्यंत सुंदर सृजन
ReplyDeleteआत्मीय आभार अतिया नूर जी
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