Wednesday, February 5, 2020

नवगीत : 'सपनों का पलायन' संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत : 
सपनों का पलायन 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मुखड़ा/ पूरक पंक्ति ~ 16/16
अंतरा ~ 16/16 

हाथ पकड़ कर कुंठाओं का,
सपनों ने कर लिया पलायन।
निष्ठा सूचक प्रश्न चिह्न के,
कष्ट प्रसव दे रहे उपायन।

आहत अंतस् झंकृत वीणा,
उदधि लहर-से भाव उमड़ते।
खंडित आज विचार बहुत हैं,
छोड़ परिंदे नीड़ उजड़ते।

ढूँढ़ रहा मन कुछ प्रसन्नता,
कहाँ छोंक दे वह अजवायन।
हाथ पकड़ कर कुंठाओं का,
सपनों ने कर लिया पलायन।

2
व्याघ्र दहाड़ काल की ऐसी,
सहमा डर से हिय कानन का।
रिश्तों का माधुर्य तिरोहित,
हुआ भ्रमाहत अपनेपन का।

टूटा सिर पर,नग कटुता का,
खोज रहा मन प्रीति-रसायन।
हाथ पकड़ कर कुंठाओं का,
सपनों ने कर लिया पलायन।

पतझर की निर्मम घातों से,
विहगों की कातर ध्वनि फूटी।
मन-उपवन की विगत बहारें,
खेद जतातीं शाखें टूटी।

राग अलाप रहे निष्ठा की,
मन कागों का सुनलो गायन।
हाथ पकड़ कर कुंठाओं का,
सपनों ने कर लिया पलायन।

दिनकर के हिस्से में आई,
साँझ कहाँ पलकों पर थमती।
तारों के आँचल में मानो,
शिशिर मोम के जैसी जमती।

खड़ी सामने श्वांस तोड़ती,
सत्य मृत्यु बनकर प्रत्यायन।
हाथ पकड़ कर कुंठाओं का,
सपनों ने कर लिया पलायन।

कुछ शब्द अर्थ: 
पलायन : अन्यत्र चले जाना 
अजवायन : छोंक लगाने का मसाला 
उपायन : भेंट उपहार
रसायन : व्याधि नाशक औषधि 
प्रत्यायन : प्रमाणित करना

संजय कौशिक 'विज्ञात'

@vigyatkikalam

1 comment:

  1. लाजवाब रचना 👌👌👌 अंतर्मन का द्वंद जिसमे एक तरफ सपनें और दूसरी तरफ हकीकत उसे शानदार तरीके से व्यक्त किया। आपके भावाभिव्यक्ति का अंदाज अलग है जो बहुत ही प्रभावी ढंग से रचना को जीवंत बनाता है ...नमन आपकी लेखनी को जिसकी हर रचना प्रेरणादायक है 🙏🙏🙏

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