गीतिका
डॉ. संजय कौशिक ’विज्ञात’
मापनी
2122 2122 2122 212
रात जो बीती हुई है क्या भुलानी चाहिए।
भूल से भूली हुई क्या स्मृति मिटानी चाहिए।।
लिख दिए थे ग्रंथ इतने कौन पढ़ या सुन सका
नव्य रचना शंख से रच ध्वनि बजानी चाहिए।।
बेटियों सी बन सकेंगी कब नई दुल्हन बता...
देश को नूतन प्रथा कुछ अब चलानी चाहिए।।
काव्य इतना है रचा ये देश पर सोया रहा
एक कविता ओज की कविवर सुनानी चाहिए।।
व्यर्थ के ये तर्क देकर जो यहाँ डंका बजाते
सीख ली जो शिष्टता कुछ तो दिखानी चाहिए।।
गोलियाँ बरसी यहाँ जब संत निर्मल देह पे
अब अलग ही आज भगवा की कहानी चाहिए।
शत मुखी ज्वाला उगलती रच रहे कविता सभी
चोर का भय मान के क्या कृति छुपानी चाहिए।।
भागते ही भागते जो चूर होकर गिर गया
शर्त उसको फिर चलाने की लगानी चाहिए।।
वो गले सबसे मिला था कष्ट जो उसको मिले
हर्ष की है टीस प्यासी अब बुझानी चाहिए।।
मल लिया सिंदूर तन पर मातु का सुनके कथन
श्रेष्ठ सेवक भक्ति हनुमत सी बढ़ानी चाहिए।।
हाथ ले विज्ञात झण्डा धर्म का अब तान चल ...
नित सनातन के विजय की जय निभानी चाहिए।।
डॉ. संजय कौशिक ’विज्ञात’
बहुत ही शानदार गीतिका 👌
ReplyDeleteनमन आपकी लेखनी को गुरुदेव 🙏
भावपूर्ण सुंदर गीतिका गुरुदेव
ReplyDeleteसारगर्भित कथन युक्त सार्थक गीतिका ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन हर युग्म कुछ कह रहा है।
हार्दिक बधाई सुलेखनी को।