गीत
युग वंदन श्री राम को
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी - 16/13
कष्ट निकंदन खलदल गंजन
रघु नंदन श्री राम को।
कोटि कोटि यूँ नमन करे नित
युग वंदन श्री राम को।।
भक्ति करें उर बोल-बोल के
राम नाम ही सार है।
भाव बूंद दृग द्रवित अगर हो
बने यही आधार है।
कर्म जड़ित हरसी पर घिसके
दे चंदन श्री राम को।।
श्रेष्ठ तपस्या योग साधना
नीलकंठ भी धारते।
पद्माकर का चक्र बताता
अजपाजप उच्चारते।
राम-नाम से अनहद महके
दे गंधन श्री राम को।।
अष्ट खण्ड यूँ दसों दिशा के
स्वामी वे हर लोक के।
उनका जम्बू द्वीप निरन्तर
तर्क प्रमाणित ठोक के।
नित्य सनातन विश्व मानता
हिय बंधन श्री राम को।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'