आदियोगी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~21/21
सौर मण्डल में चमकते सूर्य अगणित
उष्ण ऊर्जा दह रहे हैं आदि योगी।
चन्द्र सा शीतल किया अम्बर धरा को
धार बन कर बह रहे हैं आदि योगी।।
ज्ञान के विज्ञान का दे रूप अनुपम।
तेज उज्जवलमय तथा उत्तम निरुपम।।
अनुकरण कर सुषम्ना का श्रेष्ठ अद्भुत।
योगियों का है सनातन योग अच्युत।।
नाद अनहद ॐ बन अन्तस् समाये।
वाद्य सुर बन कह रहे हैं आदि योगी।।
केंद्र आज्ञा चक्र स्थावर और जंगम।
मौन पद्मासन हुए योगी विहंगम।।
सप्त तन के भेद करते से प्रमाणित।
एक आत्मा ही रहे कहते सदा नित।।
सृष्टि के इस कष्ट का हर काल कहता।
नित हृदय में रह रहे हैं आदि योगी।।
भाव व्याख्या सूक्ष्म विस्तृत के विचारक।
शब्द संज्ञा व्याकरण के एक कारक।।
गूढ़ से हर वेद शास्त्रों के प्रणेता।
बन विषय नित इंद्रियों को हर्ष देता।।
पंच तत्वों का स्वयं ये सार बोले।
दाह विष की सह रहे हैं आदि योगी।।
नित महामुद्रा महाबंधी हठीले।
खेचरी मुद्रा महावेधी सजीले।।
यूँ सदा हठ योगियों का योग ख़िलता।
ध्यान के अंतःकरण में नेह मिलता।।
खिलखिलाकर चित्त हँसते की तरंगें।
बोल उठती यह रहे हैं आदियोगी।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
सादर नमन गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteआदि योगी को समर्पित आकर्षक रचना 💐💐💐💐 प्रभावी कथन एवं बिम्ब 🙏
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं आकर्षक सृजन 👌
ReplyDeleteहर -हर महादेव 🙏
अति सुंदर , मनोहारी सृजन आदरणीय🙏🙏
ReplyDeleteआदि योगी पर बहुत ही सुंदर रचना👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏🙏गुरुदेव
ReplyDeleteवाहहहह👌👌👌👌 अति सुंदर रचना गुरुदेव 👏👏👏👏👏
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक रचना । नमन गुरुवर
ReplyDeleteशिव के गूढ़ रहस्यमयी चरित्र पर अप्रतिम सृजन।
ReplyDeleteपंच तत्वों का स्वयं ये सार बोले।
दाह विष की सह रहे हैं आदि योगी।।
आदियोगी पर निशब्द करता काव्य।
अभिनव सुंदर।
महान कृति
ReplyDeleteनमन गुरुदेव 🙏🙏
बहुत बढ़िया रचना, हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसादर नमन।
ReplyDeleteउत्तम कृति।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना जय गुरुदेव
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteनमन गुरु देव 🙏💐