कविता / गीत
मेंहदी-महावर
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 16/16
मेंहदी रचाती जब सजनी
देख महावर करे प्रतीक्षा
राग विराग हृदय की तड़पन
करे परीक्षण दृष्टि तिरीक्षा।।
बिंदी की आभा विचलनमय
अंगारों सी जगी तितिक्षा
फेरों की वे स्मृतियाँ उलझी
विस्मृति पाकर बहकी इक्षा
विरहन जैसी ज्वाला दहकी
विरह मिलन की करे समीक्षा
करुण व्यथित सा नेत्र द्रवित कर
आहत उर की भूला रक्षा
कंगन की खनखन सूनी सी
सूनी पगडंडी ने भक्षा
व्याकुल अंतः करण प्रताड़ित
हिय स्पंदन जब चली परीक्षा।।
नील कुरिंजी पुष्प सुगंधित
देता सा गजरे को शिक्षा
काल कुसुम स्थिर उर का खिलना
हर्षित क्षण की भूले भिक्षा
ठहर देखती व्याप्त वेदना
चंद्र-चकोरी प्राप्त निरीक्षा।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
नमन गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना 👌
आकर्षक बिम्ब एवं कथन 💐💐💐💐
बहुत ही शानदार रचना बिल्कुल अलग सुंदर रचना सादर प्रणाम आपको 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन। नमन गुरुदेव।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन है । आकर्षक और शानदार बिम्ब से सजाकार बिल्कुल नये ढंग से प्रस्तुत किया गया है । गुरुदेव को सादर नमन ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सादर नमन गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं हृदय स्पर्शी नवगीत👌👌💐💐🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर नवगीत
ReplyDeleteगुंथित शिल्प
बंधे हुए तुकांत
एक श्रेष्ठ रचना आदरणीय गुरुदेव
अनंत बधाइयां
सादर नमन 🙏💐
निरीक्षा, इक्षा तितिक्षा, कुरिंजी ऐसे ऐसे नए शब्द 👌👌👌👌बहुत कुछ सीखने को मिलता है 😊😊😊😊गुरुदेव 🙏🙏🙏🙏🙏🙏आपकी रचना बोलती हुई प्रतीत होती है👏👏👏👏👏👏 जो भी रचना मै पढ़ती हूँ। ऐसा लगता जैसे आप किसी के हृदय को छू कर लिखे हैं आपकी रचना से प्रेरणा मिलती है 🙏🙏🙏🙏🙏काश मैं भी कुछ ऐसा लिख पाऊं💐💐
ReplyDeleteएक और अभिनव/श्र्लाघनीय प्रयास ।
ReplyDeleteनव बिंब नव प्रतिकों के साथ।
ये एक विरह श्रृंगार का गीत है जिसमें श्रृंगार और आभूषणों की उपमाएं विरहन की मनो दशा और अंगों की हरकत से तुलनात्मक है।
विरहन के मनोभावों को बखूबी उजागर करता सुंदर गीत।
अप्रतिम सृजन।
उत्तम नवगीत गुरुदेव, सुंदर सृजन, मनोहारी रचना।
ReplyDeleteनमन गुरूदेव हर एक बार की तरह शानदार मनोहारी श्रेष्ठ रचना 👌👌🙏🌷
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