Wednesday, August 10, 2022

गीतिका : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी - 2122 2122 2122 2122

इन दिनों में मित्र का व्यवहार ऐसे हो रहा है।
सर्प की फुंकार सा उद्गार ऐसे हो रहा है।।

बिन तराजू तोल देते मित्र तज बंधन पुराना।
ब्याज खाते मूल बिन व्यापार ऐसे हो रहा है।।

टोपियों का खेल खेलें एक दूजे को चढ़ाकर।
मित्र ले माला पहन जयकार ऐसे हो रहा है।।

अब यहाँ पत्थर तिराकर बाँधते हैं सेतु कितने।
मित्र लुटिया दें डुबो उद्धार ऐसे हो रहा है।।

कौन वे बूंटी मँगाते प्राण रक्षा के लिए अब।
अब सखा विष दें पिला उपचार ऐसे हो रहा है।।

वो यहाँ पर कौन है जो पाँव धोकर जल पिये अब।
मित्र चुभता शूल सा परिवार ऐसे हो रहा है।।

आज यूँ विज्ञात ये पांडित्य फीका दे दिखाई।
मित्र बिन संसार का विस्तार ऐसे हो रहा है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

14 comments:

  1. नमन गुरुदेव 🙏
    आकर्षक गीतिका 👌

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  2. नमन गुरुदेव बहुत सुंदर गीतिका 👌👌👌

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  3. वाह! अद्भुत नमन🙇🙇💐💐🙏🙏🙏

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  4. बेहद खूबसूरत गीतिका गुरुदेव 👌🙏

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  5. बहुत सुंदर गुरुदेव,

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  6. बहुत सुंदर सृजन, शानदार, अनुपम, अनुकरणीय
    नमन गुरु देव

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  7. बहुत खूबसूरत गीतिका👏👏👏👏👏👏

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  8. बहुत शानदार सृजन । गुरुदेव को सादर नमन

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  9. सभी रूग्ण आकर्षक है, सुंदर रचना 👌 गुरुदेव 🙏।

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  10. युग्म लिखना चाहती थी , गलती से रूगण लिखा गया 🙏

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  11. अद्वितीय सृजन आ0 🙏🏻

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  12. बहुत सुंदर सृजन।
    हर युग्म अपने आप में पूर्ण सहज और आकर्षक।

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  13. बहुत सुन्दर गुरुदेव 🙏🙏

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