Wednesday, December 22, 2021

नवगीत : नव यौवन की तरूणाई : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
नव यौवन की तरूणाई
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 16/14

ढोल थिरकते उर के भीतर 
और गूँजती शहनाई 
हाथों में जयमाल सुगंधित
स्वप्नों ने ली अँगड़ाई।।

भव्य सुसज्जित मण्डप झूमे 
दिव्य चमक ले परकोटे
विद्युत सी उपकरण हँसी ने
मेट दिए दिन के टोटे 
रात्रि चाँदनी लज्जित देखे 
देख धरा भी मुस्काई।।

लोक परी आश्चर्य चकित सा
आकर्षण पर सम्मोहित
कांति चमकती नव्य यौवना
अतिक्रमणमय आरोहित
सुंदरता भी पुंज समेटे 
आज यहीं दिखने आई।।

दिव्य प्रभामय आज अचंभित
श्रेष्ठ लिए आकार खड़ी
मूर्ति ब्रह्म निर्माण कला की
हस्त धार कर हार खड़ी
ओस बूंद से भी उत्तम सी
नव यौवन की तरुणाई।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

12 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    शृंगार रस से सुगंधित शानदार नवगीत 👌
    आकर्षक बिम्ब और शब्द चयन बहुत ही प्रेरक हैं...इस नवगीत को पढ़कर ऐसे प्रतीत होता है जैसे चित्र बोलने लगा हो ...नमन आपकी लेखनी को 🙏

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  2. बेहद खूबसूरत नवगीत गुरुदेव,सादर नमन।

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  3. आकर्षक शब्दों ने मानो बिम्ब को जीवन्त कर रखा है 🙏🙏सादर नमन गुरुदेव

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  4. बहुत सुंदर नवगीत
    नमन गुरु देव 🙏💐

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  5. बहुत सुन्दर नवगीत आकर्षक लेखन सुन्दर बिंम्ब के साथ 🙏🙏🙏

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  6. नमन गुरु देव
    श्रृंगार रस का सुंदर नवगीत

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  7. बहुत सुंदर श्रृंगार रसयुक्त रचना ।

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  8. बेहतरीन रचना

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  9. खूबसूरत नवगीत आदरणीय।

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  10. वाह बहुत ही सुंदर व मन मुग्ध करने वाला नवगीत!

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  11. बहुत सुंदर और सटीक रचना ।

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