Sunday, December 19, 2021

निबन्ध कैसे लिखें ? संजय कौशिक 'विज्ञात'



निबन्ध कैसे लिखें ?
संजय कौशिक 'विज्ञात'

निबंध लिखते समय हमारे समक्ष सबसे पहला प्रश्न यही आता है निबंध विधा को लिखते समय हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना होता है। आइये जानते हैं निबंध लेखन की सावधानी के मुख्य पक्ष कौन कौन से हैं।  कला पक्ष तथा भाव पक्ष निबंध लेखन के 2 महत्वपूर्ण पक्ष हैं पहले हम जानेंगे कि निबंध के कला पक्ष के विषय में इसमें क्या क्या लिया जाएगा ? 
कला पक्ष - कला पक्ष को सावधानी से लिखते हुए जिन बातों का ध्यान रखना होगा वे इस प्रकार से हैं ... 
1 विषय को बाँधती शब्दावली - शब्दावली विषयानुसार ही प्रयोग होनी चाहिए। 
2 सरल वाक्य - वाक्य की संरचना पर ध्यान देना होगा जो वाक्य जितने सरल होंगे उतने ही प्रभावकारी भी होंगे। 
3 भाषा शैली भावानुकूल- भावों से विपरीत दिशा में प्रयोग की जाने वाली भाषा लेखन को  प्रभावहीन दर्शाएगी अतः जो भावों के अनुकूल हो भावों को शक्ति प्रदान करती हो और भावों को निखारती हो स्पष्ट करती हो निबंध लेखन में इस प्रकार की भाषा शैली ही उत्तम तथा अनुकूल रहती है।
4 विचारों के क्रम तथा क्रमबद्धता - निबंध लेखन में ये सावधानी भी अवश्य रखनी पड़ेगी कि सम्यक विचार प्रवाह क्रमानुसार होना चाहिए उनके क्रमों में बिखराव आया तो निबंध का आकर्षण भी भावों के क्रम के बिखराव के चलते बिखर जाएगा अतः क्रम का हमें विशेष ध्यान रखना पड़ेगा।
5 निबंध की सरलता तथा सजीवता - निबंध लेखन को क्लिष्टता से बचाकर सरल तथा प्रभावी बनाना चाहिए साथ ही इसमें समाहित तथ्य इस प्रकार से स्थापित हों जो इसे सजीव बना कर दर्शाने के लिए पर्याप्त हों अर्थात बोलता हुआ निबंध अपना प्रभाव अलग ही दर्शाता है। 
6 विषयान्तर का त्याग - निबंध लेखन में मुख्य केंद्र बिंदु पर ध्यान केंद्रित रखना आवश्यक है पास पड़ोस के विषय सदैव वर्जित रखने चाहिए। 
7 पुनरावृत्ति का बहिष्कार - किसी पंक्ति में कोई एक कथन अच्छा आ गया है तो उसे बार-बार कहने से बचना चाहिए। पुनरावृत्ति दोष मुक्त लेखन ही प्रभावी लेखन कहा जाता है। 
निबंध लेखन की ये बातें तो हुई कला पक्ष की  

भाव पक्ष - आइये अब जानते हैं निबंध लेखन के द्वितीय पक्ष भाव पक्ष के विषय में ....
1 नूतन विचार - पहले कही हुई बातों को ही दोबारा कहना नव्यता नहीं हो सकती अतः निबंध में जितने नूतन विचार होंगे निबंध उतना ही आकर्षक तथा प्रभावी होगा। 
2 व्यक्तित्व का ठप्पा - निबंध में व्यक्तित्व का ठप्पा अलग से दिखना चाहिए। यह नियम विषय और लेखक दोनों पर ही लागू होता है 
3 मौलिकता - निबंध लेख लेखक का मौलिक लेख होना चाहिए। 
4 प्रभावोत्पादक - निबंध लेख प्रभावोत्पादक बनाने के भी अन्य भाग हो सकते हैं । सच पूछो तो कला और भाव पक्ष भी प्रभावोत्पादक के ही उप शीर्षक हो सकते हैं और इनसे पृथक भी इस विशेष गुण के लिए ही आज इस विशेष विषय का चयन किया गया है। 
5 कल्पना प्रवणता - यथार्थ के साथ-साथ कल्पित भावों की प्रकृति के मिश्रण से ही निबंध असरकारक दिखाई देता है।

निबंध लेख के दोनों पक्षों को हमने जितनी सरलता से समझा है आइये अब उतनी ही सरलता इसके मुख्य चार अंगों को भी समझते हैं 
निबंध के मुख्य चार अंग शीर्षक, प्रस्तावना, विस्तार, उपसंहार आदि निश्चित किए गए हैं। सबसे पहले जानते हैं शीर्षक के विषय में ... 
1 शीर्षक - निबंध का शीर्षक कुछ इस प्रकार से आकर्षक होना चाहिए जिससे पाठक वर्ग में निबंध लेख को पढ़ने की उत्सुकता उत्पन्न हो जाए। 
2 प्रस्तावना - जिस प्रकार से किसी भी भवन का निर्माण कार्य उसकी नींव से प्रारम्भ होता है ठीक उसी प्रकार निबंध लेखन का प्रारम्भ भी प्रस्तावना से ही होता है यही प्रस्तावना भूमिका भी कहलाती है। भूमिका  अत्यंत रोचक और आकर्षक होनी चाहिए परन्तु यह बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए। भूमिका का सार कुछ इस प्रकार की होना चाहिए जो विषयवस्तु की झलक प्रस्तुत करे। 
3 विस्तार - निबंध लेखन के इस अंग को महत्वपूर्ण अंग कहा जाता है जहाँ विचारों का विकास होता है। यह निबंध का सर्व प्रमुख अंश है। इस अंग का संतुलित होना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि इसी अंग में निबंध लेखक विषय के प्रति अपना विशेष दृष्टिकोण प्रकट करता है। 
4 उपसंहार - निबंध की समाप्ति को ही उपसंहार कहा जाता है यह समापन एक निश्चित क्रम तथा आकृति के साथ होता है। इस अंतिम अंग में निबंध लेखक अपना जो भी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है उसे उपदेश, दूसरे के विचारों को उद्घृत कर या कविता की पंक्ति के माध्यम से निबंध समाप्त कर सकता है।

निबंध क्या है ?
निबंध का अर्थ है विचारपूर्ण लेख। संस्कृत भाषा का यह शब्द जिसका शाब्दिक अर्थ 'संवार कर सीना' ऐसे भी लिया जाता है। जानकारों के हिसाब से प्राचीन काल में हस्तलिखित ग्रंथों को संवार कर लिखा जाता था और इस प्रक्रिया को निबंध कहते थे कालांतर के बाद इसका प्रयोग उन ग्रंथों के लिए होने लगा जिनमें विचारों को बांधा जाता था। निबंध मात्र साहित्यकारों के मन में उठने वाले विचारों की अभिव्यक्ति नही अपितु लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है। निबंध को अंग्रेजी में 'एस्से' कहा जाता है। परंतु इसका रूप इतना विस्तृत है कि उसकी सटीक परिभाषा करना अत्यंत कठिन है। 

बाबू गुलाब राय के अनुसार - "निबंध सीमित आकर वाली वह रचना है जिसमें विषय का प्रतिपादन, निजीपन, स्वच्छता, सौष्ठव, सजीवता एवं आवश्यक संगति तथा संबद्धता के साथ किया जाता है। इन विशेषताओं के अतिरिक्त निबंध में बुद्धि और हॄदय के योग को भी आवश्यक माना गया है।

अच्छे निबंध में निहित महत्वपूर्ण विशेष गुण सर्वविदित हैं जो इस प्रकार से हैं एक अच्छे निबंध में कसावट, प्रभावशाली भाषा, विषयानुकूलता, निबंध में विचार और भाषा दोनों में ही कसावट का गुण होना चाहिए। उद्धरणों की भाषा कभी भी बदलनी नहीं चाहिए। 
निबंध का अर्थ ही है भली भांति बंघा हुआ या कसा हुआ। विराम चिन्हों का समुचित प्रयोग आवश्यक है। विचार बिखरे न हों। चयनित विषय पर चिंतन मनन का लेख ही निबंध है। विचारों में एक शृंखला हो जो क्रमबद्ध हो। विचारों में संतुलन हो अर्थात् प्रमुख बातों पर अधिक महत्व एवं गौण बातों को कम महत्व देना चाहिए। निबंध स्पष्ट होना चाहिए। निबंध में बदलती हुई विषय-सामग्री के अनुसार पैरे बदलने चाहिए। 

निबंध कितने प्रकार के होते हैं ?
आइये अब जानते हैं सबसे अहम बात कि निबंध कितने प्रकार के होते हैं निबंध के प्रकार के हैं- 
वर्णनात्मक निबंध, विवरणात्मक निबंध, भावात्मक निबंध, साहित्यिक या आलोनात्मक निबंध 
1 वर्णनात्मक निबंध - इन निबन्धों में निरूपण अथवा व्याख्या की प्रधानता रहती है। विभिन्न प्रकार के दृश्यों, घटनाओं तथा स्थलों का आकर्षक वर्णन करना ही इन निबन्धों का कलेवर - विषयवस्तु होता है। इन निबन्धों की अन्य विशेषता यह है कि- यहाँ प्राय: प्रत्येक निबंधकार अपने निबंध में एक सजीव-चित्र उपस्थित करता है। तीर्थ, यात्रा, नगर, दृश्य-वर्णन, पर्व-त्यौहार, मेले-तमाशे, दर्शनीय-स्थल आदि का मनोरम एवं संश्लिष्ट वर्णन करना ही निबंधकार का प्रमुख उद्देश्य होता है। इनमें लेखक प्रकृति और मानव-जगत् में से किसी से भी विषय चयन कर सर्वसाधारण के लिए निबंध-रचना करता है। 
2 विवरणात्मक निबंध - विवरणात्मक निबन्धों में कल्पना एवं अनुभव की प्रधानता होती है। साथ ही इस वर्ग के निबन्धों में वर्णन के साथ-साथ विवरण की प्रवृत्ति भी विद्यमान रहती है। इन्हें कथात्मक अथवा आख्यानात्मक निबंध भी कहा जाता है। विवरणात्मक-निबन्धों की विषयवस्तु मुख्यत: जीवनी, कथाएँ, घटनाएँ, पुरातत्त्व, इतिहास, अन्वेषण, आखेट, युद्ध आदि विषयों पर आधृत होती है। ये निबंध ‘व्यास-शैली’ में लिखे जाते हैं। 
3 भावात्मक निबंध - भावात्मक-निबन्धों में बुद्धि की अपेक्षा रागवृत्ति की प्रधानता रहती है। इनका सीधा सम्बन्ध ‘हृदय’ से होता है। अनुभूति, मनोवेग अथवा भावों की अतिशय अभिव्यंजना इन निबन्धों में द्रष्टव्य है। इन निबन्धों में निबंधकार सहृदयता, ममता, प्रेम, करुणा, दया आदि भावनाओं से युक्त व्यवहार को प्रकट करता है।
4 साहित्यिक या आलोनात्मक निबंध - किसी साहित्यकार, साहित्यिक विधा या साहित्यिक प्रवृत्ति पर लिखा गया निबंध साहित्यिक या आलोचनात्मक निबंध कहलाता है, जैसे मुंशी प्रेमचंद, तुलसीदास, आधुनिक हिन्दी कविता, छायावाद हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग आदि। इसमें ललित निबंध भी आते हैं। इनकी भाषा काव्यात्मक और रसात्मक होती है। ऐसे निबंध शोध पत्र के रूप में अधिक लिखे जाते हैं।

हिंदी निंबध साहित्य को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जाता है -
भारतेंदुयुगीन निबंध, द्विवेदीयुगीन निबंध, शुक्लयुगीन निबंध, शुक्लयुगोत्तर निबंध एवं, सामयिक निबंध-1940 से अब तक जो निबंध लिखे जा रहे हैं ललित निबंध के विषय में रमेशचंद्र शाह ने कहा है कि "ललित निबंध वस्तुतः आत्मनिबंध हैं" वहीं निबंध का इतिहास खोजने का प्रयास किया जाता है तब हमारे समक्ष "हिंदी के प्रथम निबंध के रूप में राजा भोज का सपना (1839 ई.) का उल्लेख मिलता है।" लगभग 180 वर्ष पुराना इतिहास मिला है। "सदासुखलाल के ’सुरासुरनिर्णय’ के आधार पर इन्हें हिंदी का प्रथम निबंधकार माना जाता है।" निबंध का एक और रूप "प्रतापनारायण मिश्र के निबंधों के रूप में प्रकट होता है जिनमें हास्य, व्यंग्य, चुहलबाजी, चुटकी, आक्षेप, हार्दिकता का अद्भुत पुट विद्यमान है। प्रतापनारायण मिश्र के निबंध फक्कङपन एवं हास-परिहास से परिपूर्ण है।" निबंध विधा को देखते हुए जब और आगे बढ़ते हैं तब हम देख और समझ पाते हैं कि "बालमुकुन्द गुप्त भारतेन्दु और द्विवेदी युग के बीच की महत्त्वपूर्ण कङी है, जिनके पत्रात्मक-शैली के निबंधों में व्यंग्य की मार है। शिवशंभु के चिट्ठे ’भारतमित्र’ में 1904-05 ई. में प्रकाशित हुए थे, जो लार्ड कर्जन को लेकर लिखे गये थे।"
"चंद्रधर शर्मा ’गुलेरी’ ने इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्व, भाषा इत्यादि पर गवेषणात्मक निबंध लिखे हैं।" जबकि एक और दृष्टिकोण से हम पाते हैं कि "भारतेन्दु-युग के बहुचर्चित निबंधों में कालिदास की सभा (बालकृष्ण भट्ट), स्वर्ग की विचार सभा (भारतेन्दु), यमलोक की यात्रा (स्वप्न-शैली में राधाचरण गोस्वामी द्वारा रचित), भारतखंड की समृद्धि (लाला श्रीनिवास ) इत्यादि है।" 

क्या निबंध में तत्व भी होते हैं?
जी हाँ जिस प्रकार से मानव जीवन के लिए आवश्यक पाँच तत्व हैं ठीक उसी प्रकार निबंध के लिए भी इसके तत्व आवश्यक हैं एक निबंध में मुख्य रूप से 3 तत्व होते हैं जो इस प्रकार के बताए गए हैं 
1 लेखक का व्यक्तित्व - निबंध विधा में निबंध लेखक की विचारधारा और उसके व्यक्तित्व की झलक का दर्पण कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 
2 वैचारिक और भावनात्मक आधार - निबंध विचारों और भावों के समूह का वह वर्ग है जो अपने भीतर से शीर्षक से संबंधित विचारों और भावों का शीतल मनोहारी झरना सा बहा कर उसमें स्नान करने वाले पाठक की आत्मा तक आहट दे सके। 
3 भाषा शैली - सरल सरस प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए। जिससे पाठक को पढ़ने में आनंद प्राप्त हो वह मध्य में छोड़ कर अगले निबंध पर जब तक न जाये जब तक उपसंहार से परिचित न हो जाये।
इन तीनों की परिभाषा भिन्न - भिन्न हो सकती है परंतु उद्देश्य स्पष्ट है कि निबंध विधा को साहित्यिक दृष्टिकोण से शुद्ध लिखा जा सके ...

संजय कौशिक 'विज्ञात'

9 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी ....हृदयतल से आभार 🙏

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    1. 🙏बहुत अच्छी जानकारी दीं

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  2. Atiuttam jankari Gurudev,sadar Naman💐💐🙏🙏

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  3. बहुत अच्छी जानकारी ज्ञानवर्धक बहुत आभार समझाने और बताने के लिए 🙏🙏🙏

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  4. बहुत ही उत्तम व सटीक जानकारी निबंध पर। नमन आ.

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  5. साहित्य की विविध विधाओं पर आपका अन्वेषणात्मक श्रम अतुल्य है ।
    फिर एक शानदार पोस्ट, विविध विधाओं पर लिखने को उत्सुक नवीन साहित्यकार और लेखकों के लिए अति उपयोगी
    पोस्ट।
    बहुत बहुत बधाई।

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  6. बहुत ही ज्ञान वर्धक लेख 👌👌💐💐

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  7. ज्ञानवर्धक पोस्ट 👌👌🙏

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  8. बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट 👏👏👏👏

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