Thursday, November 25, 2021

नवगीत : शब्दशक्ति : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
शब्दशक्ति
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~14/12

सप्त सुर में गूँजती सी
काव्य की अनुपम छटा
नौ रसों के भाव नूतन
यौवना बाँधे जटा।।

तुक वसन तन पर निखरता
कामनी सी दंग करती
बिन तुकों की धार लज्जा
ओढ़नी सिर ओढ़ मरती
शब्द से शृंगार लेकर
अर्थ की उलझी लटा।।

ले गणित का ज्ञान गहरा
श्रेष्ठ विद्योत्मा यही है
हारते काली जहाँ पर 
बात विदुषी सी कही है
छंद लेखन झट निभाये
शिल्प है ऐसा रटा।।

चित्र यूँ हितकर उकेरे
बिम्ब की अनुपालना से
दोष सारे लक्षणा के
छानती है छालना से
व्यंजना की ये तपस्या
शक्ति रखती जो सटा।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

13 comments:

  1. बहुत ही शानदार अनोखा नवगीत 👌
    अन्य सभी नवगीत से हट कर शब्दशक्ति का अनुपम उदाहरण।
    नमन आपकी लेखनी को गुरुदेव 🙏

    ReplyDelete
  2. कविता को एक यौवना का रूप देने हुये, शब्द शक्ति से अलंकृत कर लिखा गया एक शानदार नवगीत👏👏👏👏👏👏👏

    ReplyDelete
  3. खबसूरत शानदार नवगीत

    ReplyDelete
  4. अद्भुत अद्भुत

    ReplyDelete
  5. बहुत ही खूबसूरत नवगीत अद्भुत 👌👌🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  6. अनुपम कृति
    नमन गुरु देव 🙏💐

    ReplyDelete
  7. शब्द शक्ति को मानवीय करण से कामिनी रूप देकर कामिनी के हर गुणों को सटीक उपमाओं से सजाया असाधारण नव गीत।
    विद्योतमा, विदुषी जैसे चरित्रों की तुलना गीत से! अभिनव अनुपम।
    अहा!!

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुन्दर भाव भरा नवगीत 👌🙏गूरूदेव की अद्भुत लेखनी को नमन करतीं हूं।
    🙏🙏💐💐

    ReplyDelete
  9. होने को कुछ भी हो सकता
    अंतर्मन की शक्ति बड़ी
    तीर न खाली जाएगा जब
    लक्ष्यों पर हो आँख गड़ी

    आप हमारे खेवनहारे
    मांझी का आह्वान करें।
    गिर-गिर कर चलना सिखलाया
    गुरुवर का हम ध्यान करें।।

    गुरुदेव की रचनाएं हम नवोदितों की प्रेरणास्रोत हैं।
    नमन।

    ReplyDelete
  10. क्‍या खूब ही ल‍िखी व‍िज्ञात जी, सप्‍त सुर में गूंजती काव्‍य की अनुपम छटा... वाह

    ReplyDelete