Saturday, November 6, 2021

नवगीत : पीर अन्तस् की उगलती : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
पीर अन्तस् की उगलती 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~14/14

पीर अन्तस् की उगलती 
काँच की चूड़ी चटक से
ये विरह का ज्वारभाटा
घोर तड़पन की खनक से।।

मेंहदी का रंग फीका
यूँ महावर खो चुका अब।
पायलें हो त्रस्त रोई
हर्ष चहुँ दिश का रुका जब।
आज गर्दन भी अकड़ के
यूँ व्यथित सी है चनक से।।

भाव गढ़ते मूर्ति बोले
वो कला भी शांत दिखती
मौन हैं छीनी हथौड़ी
धार से जो क्लांत दिखती
भीग कर आँखें ठहरती
रूप दर्शन की खटक से।।

आग ज्यूँ ज्वालामुखी की
यूँ दहकती बढ़ रही सी
वेदना की लौ भड़कती
कुछ अखरती चढ़ रही सी
हिय नहीं संतुष्टि पाये
दूर प्रिय की इक झलक से।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'

20 comments:

  1. बहुत सुंदर शब्द संयोजन। आपकी लेखनी को नमन आ.

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  2. बहुत ही शानदार रचना
    नमन गुरु देव 🙏💐

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  3. अति उत्तम रचना

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  4. बहुत ही शानदार नवगीत गुरुदेव 🙏
    अंतर मन की व्यथा का सटीक चित्रण वो भी इतनी लयात्मकता के साथ ...बहुत ही प्रेरणादायक रचना 🙏

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  5. बहुत सुंदर 👌👌🙏🌷🌹

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  6. बहुत उत्कृष्ट नवगीत 👌👌🌷🌹🙏

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  7. शानदार नवगीत । प्रणाम आपको ।

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  8. बहुत सुन्दर। नवगीत शानदार प्रणाम आपको🙏🙏👌👌👌👌

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  9. बहुत ही सुंदर नवगीत। नमन लेखनी को।

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  10. बहुत सुंदर नवगीत 👌
    नमन गुरुदेव 🙏

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  11. सुंदर काव्यमय नवगीत ।

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  12. अनुपम सृजन 🙏🏻
    प्रणाम आ.गुरुदेव🙏🏻🙏🏻

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  13. मैं तो इसे गीत ही कहना चाहूंगा। वैसे भी गुलाब का कोई भी नाम हो, उसकी सुगंधि में कोई अंतर नहीं पड़ता। इस गीत की श्रेष्ठता असंदिग्ध है - भाव में भी, रूप में भी।

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  14. सुंदर शब्द संयोजन से श्रेष्ठ गीत रचना ,
    बधाई आपको

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  15. हृदय स्पर्शी नवगीत, विरह श्रृंगार का अनुपम उदाहरण।
    नव लक्षणाएं नव व्यंजनाएं।
    अभिनव सृजन गुरुदेव।

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  16. बहुत सुंदर अनुपम अद्वितीय गीत

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  17. वाह वाहहहहह बहुत सुंदर गीत। अद्भुत भावाभिव्यक्ति। हार्दिक शुभकामनाएं।

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  18. बहुत ही शानदार रचना आदरणीय!👏👏👏👏👏

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