Saturday, June 12, 2021

मत्तगयंद सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

मत्तगयंद सवैया
संजय कौशिक 'विज्ञात'

शिल्प विधान

मत्तगयन्द सवैया 23 वर्णों का छन्द है, जिसमें सात भगण (ऽ।।) और दो गुरुओं का योग होता है। नरोत्तमदास, तुलसी, केशव, भूषण, मतिराम, घनानन्द, भारतेन्दु, हितैषी, सनेही, अनूप आदि ने इसका प्रयोग किया है।
विधान- मत्तगयंद सवैया
भगण ×7+2गुरु, 12-11 वर्ण पर यति चार चरण समतुकान्त।
मापनी ~~
211 211 211 211, 211 211 211 22


उदाहरण-1

कंकर-कंकर को कहते सब, शंकर देव समान हमारे।
नर्मद से निकले जितने जब, पूजन के अधिकार विचारे॥
भाव बिना भगवान कहाँ यह, सत्य कहूँ सब तथ्य पुकारे।
साफ रखो हिय प्रेम दिखे फिर, ये सुख सागर नाथ सहारे॥

संजय कौशिक "विज्ञात"



उदाहरण-2

एक प्रभावित ज्ञान बड़ा यह, पाँच रहे सच तत्व निराले।
भुक्ति मिले फिर मुक्ति सधे तब, मोक्ष करे वह श्रेष्ठ उजाले।
साधन धाम बने दर आकर, भक्ति विधान पदार्थ कमाले।
संचित हो हरि ध्यान किया धन, चोर भला वह कौन चुराले।।

संजय कौशिक "विज्ञात"




उदाहरण-3

देख दिवाकर यूँ तपता जब, आज धरा यह टेर पुकारे।
मेघ सदा दुख यूँ हरता सब, ताप हरे फिर कष्ट निवारे।
मौन रहा अब और गया छुप, स्वप्न रहे वह आज उधारे।
साँझ ढले जब पूर्व मिले तब, हर्ष बढ़े हिय कार्य विचारे

संजय कौशिक 'विज्ञात'

6 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही शानदार उदाहरण 👌

    ReplyDelete
  2. सादर नमन गुरुदेव 🙏

    ReplyDelete
  3. मत्तगयंद सवैया ! अप्रतिम सृजन, तीनों सवैये बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
  4. ज्ञान वर्धक जानकारी गुरुवर को नमन

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर जानकारी आ. गुरुदेव जी

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर जानकारी नमन गुरुदेव🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete