Thursday, April 15, 2021

नवगीत : साधना निष्ठुर : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत
साधना निष्ठुर 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~11/14

वर्षा मधुर सरगम
बजे ज्यूँ वाद्य सारंगी
अनुपम नहाई सी
लगे ये साँझ नारंगी।।

यह साधना निष्ठुर 
तपस्या की तपाहट सी
औरा मनोरम सा
खड़ी चुप सनसनाहट सी
फिर टेर आहट सी 
हृदय के तार की संगी।।

चिमटा बजाती सी
कड़कती सी पड़ी विद्युत
फिर वृष्टि भभकी सी
वहीं रमती चमक अच्युत
बन योगिनी अद्भुत
रमाई भस्म भी ढंगी।।

धुन इक मल्हारी सी
थिरकती नव्य स्वर-ग्रामी
अलखें निरंजन सी
प्रकट हो गूँजती यामी
वह सांध्य बन रामी
तपस्वी श्रेष्ठ अनुषंगी।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

15 comments:

  1. श्रेष्ठ शब्दों का चयन, उत्तम सृजन 👌 आ.

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  2. बहुत सुन्दर और सार्थक नवगीत।
    --
    ऐसे लेखन से क्या लाभ? जिस पर टिप्पणियाँ न आये।
    ब्लॉग लेखन के साथ दूसरे लोंगें के ब्लॉगों पर भी टिप्पणी कीजिए जनाब।
    तभी तो आपकी पोस्ट पर भी लोग आयेंगे।

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    1. आदरणीय डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी,
      आत्मीय आभार 🙏🙏🙏
      आप से महान, श्रेष्ठ साहित्य साधक एवं साहित्य निःस्वार्थ भाव सेवी एक के आने से ही पोस्ट 1 लाख कमेंट से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसे में फिर किसी अन्य कमेंट की प्रतीक्षा व्यर्थ है। सादर नमन 🙏🙏🙏

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  3. हृदयस्पर्शी नवसृजन एवं आध्यात्मिक वंदन🙇🙇💐💐🙏🙏

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  4. बहुत ही खूबसूरत नवगीत 👌👌👌
    आपके तुकांत बहुत ही अनोखे होते हैं जो रचना को एक अलग ही आकर्षण देते हैं। खूबसूरत बिम्ब 👌👌👌
    नमन आपकी लेखनी को जिनकी हर रचना एक अद्भुत उदाहरण है 💐💐💐

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  5. बेहतरीन रचना नवबिंबों का सार्थक प्रयोग

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  6. धुन इक मल्हारी सी
    थिरकती नव्य स्वर-ग्रामी
    अलखें निरंजन सी
    प्रकट हो गूँजती यामी
    वह सांध्य बन रामी
    तपस्वी श्रेष्ठ अनुषंगी।।
    वाह! बहुत ही मार्मिक सृजन संजय जी। शब्दों के साथ भावों की जुगलबंदी श्रेष्ठ है। हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय संजय जी🙏🙏 💐💐

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  7. बेहद खूबसूरत नवगीत आदरणीय 👌👌👌👌

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  8. बहुत ही सुन्दर और मनोरम नवगीत
    नमन गुरु देव 🙏

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  9. बहुत ही शानदार आदरणीय गुरुदेव अपका सुदंर नवगीत,👌👌👌👌🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

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  10. अनुपम अनूठे शब्दो से सजा सुंदर नवगीत आदरणीय गुरु जी🙏

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  11. बहुत सुन्दर शानदार नव गीत👌👌👌👌

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  12. अत्यंत आकर्षक बिंबों से सजा,बेहद खूबसूरत नवगीत👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏🌷🌷🌷🌷🌷🌷

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  13. नव उपमाएं, नया शब्द सौष्ठव, अद्वितीय सृजन नहीं लिख सकती क्योंकि दूसरे दिन आपका ही सृजन इस धारणा को मिथ्या साबित कर देता है, तुलना करना भी कठिन कि कल वाला सृजन आज से उत्तम है या आज वाला कल से उत्तम है । "सारी बीच नारी है की नारी बीच सारी है सारी ही की नारी है की नारी ही की सारी है"।
    हम जिन व्यजंनाओं तक पहुंच भी नहीं पाते आप उन्हें लिखकर नयी व्यंजनाओं को फिर कलम में बाँध लेते हैं।
    अप्रतिम अद्भुत।
    एक असाधारण सृजन।


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