Tuesday, April 20, 2021

नवगीत ; प्रथम स्पर्श : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत
प्रथम स्पर्श
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी~16/14

प्रथम स्पर्श की मधुर तरंगे
कितनी तुमको याद प्रिये।।
स्वर्ण जयंती उत्सव करता
टोटे में आल्हाद प्रिये।।

अग्नि समक्ष रचा वो मण्डप
तेरी शोभा पर वारी
कदली के तरु चार दिशा की
करते हँसके रखवारी
चुनरी की छाया तारों की
ढोलों के थे नाद प्रिये।।

शहनाई धुन अम्बर घोले
कानों में आनंद हँसा 
वैदिक मंत्रों के उच्चारण ने
कर में कर को दिया फँसा
संगम यह सुर ताल सधा सा
श्रेष्ठ राग का स्वाद प्रिये।।

यज्ञ कुण्ड की पावन बेदी 
पाणि ग्रहण संस्कार कहा
प्रथम स्पर्श उन सात वचन में
फेरों का भी साथ रहा
गठबंधन हर्षाया कितना
करके मधु संवाद प्रिये।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

8 comments:

  1. यज्ञ कुण्ड की पावन बेदी
    पाणि ग्रहण संस्कार कहा
    वाह बहुत ही सुन्दर नवनीत आ.गुरुदेव जी
    प्रणाम आप को और आप की लेखनी को।

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  2. प्रथम स्पर्श की मधुर तरंगे ,कितनी तुमको याद प्रिये
    वाह वाह बहुत ही शानदार गुरुदेव बेहतरीन नवगीत नमन आपको 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹

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  3. बहुत सुंदर नवगीत। नमन लेखनी को।

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  4. बेहद खूबसूरत नवगीत 👌👌👌
    श्रृंगार रस का आभास देकर विवाह की रस्मों को जीवंत कर हर्ष की अनुभूति कराती सुंदर रचना। हार्दिक बधाई गुरुदेव इस शानदार सृजन की 💐💐💐💐

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  5. टोटे में भी जो आल्हाद जगादे
    वो अनुभूति कितनी अंतस तक पैंठी है
    सुंदर अहसासों से सजा सुंदर श्रृंगार गीत।
    लब्ध मुग्ध परिणय के हर पल को जीवंत करती सरस रचना।

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  6. वाह अति सुन्दर

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  7. बेहद खूबसूरत रचना 👌 आ.

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