Sunday, April 18, 2021

नवगीत : धरणी लगे कुंदन : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
धरणी लगे कुंदन
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~11/14 

ये बालियाँ स्वर्णिम
तपे धरणी लगे कुंदन
कटती उपज बिखरी
उठे फिर तृप्त सी गंधन।।

ले हर्ष बैसाखी
बजाता ढोल से मधुरिम
यह पर्व आनंदित
रचाता चित्र से कृत्रिम
लू से तना अनुपम
घटा सा एक अवगुंठन

परिपक्व से गेहूँ
दराती हाथ में घूमे
ये शीश मंडासी
उतरते फाँट से झूमे
यूँ लामणी पुलकित 
कृषक का नित करे वंदन।।

यूँ भाग्य खेतों का
हँसे निर्माण होता सा
खिलता परिश्रम नित
दिखे कल्याण होता सा
दे भूख को उत्तर
सफलता ने जड़ा चुम्बन।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

आँचलिक सम्पुट 

मंडासी- जो कपड़ा सिर बांधा जाता है।
लामणी- फसल कटाई का कार्य।
फाँट /फेर- मेढ़ द्वारा निर्मित चौकोर खेत में एक निशान में दूसरे निशान तक फसल को काट देना अर्थात एक चक्र पूरा कर देना।

3 comments:

  1. बहुत ही सुंदर बिम्ब 👌
    गाँव की याद दिला दी। देखा तो हमने भी था यह दृश्य पर उसे इतने सुंदर शब्दों में गीत का रूप न दे सके। नमन आपकी लेखनी को गुरुदेव 🙏

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  2. वाह वाह, बेहद खूबसूरत रचना आ.

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