Thursday, April 1, 2021

नवगीत : व्यथा की परीक्षा : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
व्यथा की परीक्षा
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 20 

व्यथा की परीक्षा हृदय फूट रोये
गले रुंधते से दृगों ने छुपोये।।

तड़प वेदना की कहाँ हर्ष जानें 
कटे पल नहीं जब किन्हें वर्ष जानें
न संघर्ष जानें मचल टीस ढोये।।

विकट सी घड़ी के मकड़ जाल घेरे
निकल कौन पाए जहाँ काल घेरे
नई चाल घेरे भँवर सी डुबोये।।

झटक धैर्य तोड़े व्यथित मन टसकता
खटकती कथा की प्रथा से कसकता 
वहम जब चसकता द्रवित हो भिगोये।।

पवन कब सुखादे विरह में नमी है
सभी स्वप्न बिखरे यही इक कमी है 
दही सी जमी है दुखों ने बिलोये।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

2 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही सुंदर गीत जिसे गुनगुनाने में अलग ही आनंद है। प्रवाह उत्तम.... सुंदर सृजन 👌👌👌

    ReplyDelete