Thursday, March 18, 2021

गीत : गुलकंद : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत 
गुलकंद 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 14/14

बैठ मौसम के भरोसे
पतझडों की टांग तोड़ी
कंटकों से फूल लूटे
जुड़ गई गुलकंद थोड़ी।।

वृद्धता की इस दवा ने
रोग भी कुछ हर लिये
आयु को लम्बा किया फिर
श्वास भी कुछ भर दिये
भेद जीवन के सिखाकर
और संचित शक्ति जोड़ी।।

नेह अपने से निभाकर 
दानवी ये मार मारी
कर प्रकृति विद्रोह प्राणी
भूलता है बात सारी
रेल ने ईंजन चलाकर
उस धुएँ से आँख फोड़ी।।

खिन्न दिव्यांगी प्रकृति ये
मांगती है इक सहारा
रोग का करती हरण है
पर दवा कारण पुकारा
कौन है दिव्यांग ढूँढो
मानवों ने जात छोड़ी।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

2 comments:


  1. बैठ मौसम के भरोसे
    पतझडों की टांग तोड़ी
    कंटकों से फूल लूटे
    जुड़ गई गुलकंद थोड़ी।।

    शानदार मुखड़ा 👌👌👌
    गुलकंद वाकई अपने नाम के अनुरूप है।
    नए सृजन की हार्दिक बधाई गुरुदेव 💐💐💐

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  2. बेहद खूबसूरत रचना 👌 आ.

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