Wednesday, March 17, 2021

नवगीत : इंद्रधनुषी सा अबीरी : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
इंद्रधनुषी सा अबीरी 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 14/14

इक महोत्सव रूप धरके
पर्व होली यूँ दमकता
इंद्रधनुषी सा अबीरी
रंग फागुन का चमकता।।

हिय पुलक पुलकित पलों का
आज तन्द्रित योग खिलता
ढंग आकर्षण वहाँ पर
प्राप्य रूपक नित्य झिलता
फिर भ्रमर का गान गुंजित
बाग उपवन में गमकता।।

पंख यौवन के खुले जब
खोल कर वे बाँह उड़ते
मस्त गलियों में लहरते
दृश्य मोहक तीव्र मुड़ते
मन मचलता तितलियों का
नेह लाये जो रमकता।।

प्रेम का त्यौहार अनुपम
हर हृदय को मान देता 
पर्व अपना हर कलुषता 
छालनी बन छान देता
एक इतराहट दिखाकर 
माह फाल्गुन ये छमकता।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

10 comments:

  1. शानदार बिम्बों से सजा खूबसूरत होली नवगीत 👌
    अपने अलग अंदाज में नव्यता लिए लेखनी पुनः चली है 💐💐💐

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  2. वाह!शानदार सृजन👌👌✍️✍️💐💐😊😊🙏🙏

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  3. वाह! बहुत सरस सुंदर फाल्गुनी गीत ।
    अंलकारों का "अभिनव" प्रयोग होली को सार्थ करता सुंदर नवगीत।

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  4. बहुत ही सुन्दर आदरणीय

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  5. साहित्य की काव्य विधा के अलंकार विधान की टूटती साँसों में नव जीवन का संचार करता सुंदर, अभिनव काव्य चित्र आदरणीय संजय जी। हार्दिक शुभकामनाएं लयबद्ध भावपूर्ण होली गीत के लिए। 🙏🙏💐💐

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  6. हिय पुलक पुलकित पलों का
    आज तन्द्रित योग खिलता
    ढंग आकर्षण वहाँ पर
    प्राप्य रूपक नित्य झिलता
    फिर भ्रमर का गान गुंजित
    बाग उपवन में गमकता।।
    👌👌👌👌👌🙏🙏

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