Saturday, March 28, 2020

नवगीत : क्षोभ : संजय कौशिक ' विज्ञात'


नवगीत 
क्षोभ
संजय कौशिक ' विज्ञात' 

मापनी~~ 14/14

क्षोभ का भाजन बने जब,
खूब बादल फिर बरसते।
बाँट ते उपहार देखो, 
दृश्य जितने भी तरसते।

1
देख आकर्षक मनोहर,
वो घटा घनघोर अनुपम।
वारते सब भूमि पर हैं, 
ये सुधामय जल सुरोपम।
व्यक्ति पूछे प्रश्न जितने, 
दे उन्हें उत्तर सँवरते.....

देख खुशबू की लहर फिर, 
गा रही कुछ गीत उत्तम।
फिर खुशी महकी उठे तब
इंद्र धनुषी रंग सप्तम।
ये हवा जो प्राण बसती,
कह रही चहुँ दिश विचरते...

3
गूंजते है झुनझुने से,
लावणी गाती दिशाएँ।
धूप मिलकर चाँदनी से, 
दृश्य कुछ अच्छे बनाएँ।
नेत्र से जल धार बहती,
दृग पटल ये फिर निखरते....

संजय कौशिक ' विज्ञात'

3 comments:

  1. ये हवा जो प्राण बसती,
    कह रही चहुँ दिश विचरते...
    वाह वाह बहुत खूब

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  2. सुंदर प्रस्तुति

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  3. सुन्दर भाव बधाई

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