Saturday, March 14, 2020

नवगीत : चिठ्ठी : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
चिठ्ठी
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~~ 14/14

पढ़ जिसे फिर रो पड़ा मन,
एक चिट्ठी डाक लाई।
शुष्क से बरसात के घन,
पीर ऐसे खिलखिलाई।

1
लौटना घर चाहता है,
जो पखेरू उड़ चुका था।
वो समय जो बीत कर के,
धड़कनों में जो रुका था।
आह को कुछ खास करदे,
वाह मिलकर तिलमिलाई।
पढ़ जिसे फिर रो पड़ा मन,
एक चिट्ठी डाक लाई।

2
साथ जिसके एक दिन जब,
गाँव में खेड़ा धुका था।
संटियों के खेल से कुछ,
ये बदन खासा ठुका था।
आज यादें फिर रुलाये,
हाथ आकर कसमसाई।
पढ़ जिसे फिर रो पड़ा मन,
एक चिट्ठी डाक लाई।

3
सोचता मन रह गया था,
स्वप्न से बाहर निकल कर।
और अन्तस् कुछ दहकता,
पूर्व उससे ही सँभल कर।
आंसुओं से आँख भरती,
बस जरा सी डबडबाई।
पढ़ जिसे फिर रो पड़ा मन,
एक चिट्ठी डाक लाई।


संजय कौशिक 'विज्ञात'

22 comments:

  1. वाह,,बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन

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  2. पढ़ जिसे फिर रो पड़ा मन ...अति सुन्दर.आदरणीय।.भावों भरी पाती 👌👌👌👌👌👌

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  3. बेहद हृदयस्पर्शी रचना 👌👌

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  4. उत्कृष्ट आपकीलेखनी अद्भुत है

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  5. उत्तम रचना सर जी

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  6. लौटना घर चाहता है,
    जो पखेरू उड़ चुका था।
    वाह बहुत खूब बेहतरीन और लाजवाब सृजन गुरु देव

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  7. गुजरे कल की याद दिलाता शानदार नवगीत 👌👌👌

    खो गई हैं चिट्ठियाँ पर याद बाकी है अभी
    आँसुओं से भीगी स्याही महक उठती थी कभी

    चिट्ठी लिखना हो या चिट्ठी की प्रतीक्षा दोनों ही अनुभव यादगार हुआ करते थे। चिट्ठी का दौर खत्म हो चुका है पर यादें जिंदा है जो अक्षरों का मोल बताती हैं...सादर नमन 🙏🙏🙏

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  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  9. बेहतरीन लाजबाब,बहुत कुछ यादे याद आगाई

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  10. जीवन के पूर्वाभास का एक यथार्थ चित्र को इंगित करता प्रसंग श्लाघनीय है। विज्ञात जी! सादर शुभकामना।

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  11. अ‌त्यत‌ं खूबसूरत कविता

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  12. वाह!!!
    बहुत लाजवाब ...भावपूर्ण सृजन।

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  13. बहुत सुन्दर नेह भरी पाती👌👌👌👌👏👏👏👏

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  14. बहुत ही सुन्दर एक जमाना याद आ गया उन चिट्ठियों में कितना अपनापन था कितना पोस्ट मेन चाचाजी का इंतजार होता था बहुत सुन्दर

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  15. बहुत सुंदर वाह वाह वाह बेहतरीन

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  16. शानदार भावपूर्ण नवगीत
    आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🙏

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  17. सुन्दर गीत।
    कभी तो दूसरों के ब्लॉग पर भी अपनी टिप्पणी दिया करो।

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  18. बहुत सुंदर वाहः

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  19. उत्कृष्ट सृजन

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