Friday, February 28, 2020

नवगीत इक शिखण्डी चाहिये संजय कौशिक 'विज्ञात'




नवगीत 
इक शिखण्डी चाहिये
संजय कौशिक 'विज्ञात' 


मापनी 12/12 

आज जीने के लिये 
इक शिखण्डी चाहिये
मातृ नारी शक्ति का
रूप चण्डी चाहिये

आधुनिक शिक्षा मिले, 
कार्य हों सरकार के।
नौकरी पद प्राप्त हों, 
योग्यता आधार के। 
छीन ले अधिकार से, 
बस घमण्डी चाहिये।
मातृ नारी शक्ति का,
रूप चण्डी चाहिये।

2
भावना दृढ़ ले हृदय, 
कष्ट से दे मुक्ति है।
रुद्र को जो मानती, 
हिय शिवा की युक्ति है।
और लहरे वायु में, 
हाथ झण्डी चाहिये।
मातृ नारी शक्ति का,
रूप चण्डी चाहिये।

राम सीता से चरित,
कल्पना साक्षात हों।
मुक्त हो पाषाण से, 
आज नारी व्याप्त हों।
फिर सुना दे जो कथा, 
खग भुशुण्डी चाहिये।
मातृ नारी शक्ति का,
रूप चण्डी चाहिये।

4
यातनाएँ झेलती, 
आज चिंतन कुछ करो। 
अम्ल की वर्षा सहे, 
दुख सुता के मिल हरो।
नाद घर-घर गूंजती, 
फिर त्रिखण्डी चाहिये।
मातृ नारी शक्ति का,
रूप चण्डी चाहिये।

कुप्रथाएँ भीष्म सी, 
मुक्त होंगे फिर सभी।
कर नहीं वो अस्त्र ले, 
शस्त्र बनके खुद अभी।
और फिर प्रतिशोध ले, 
लौ अखण्डी चाहिये।
मातृ नारी शक्ति का,
रूप चण्डी चाहिये।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

7 comments:

  1. अप्रतिम अप्रतिम अप्रतिम ....
    शब्द भाव अप्रतिम भरा
    भरा अखण्ड सा भाव
    भाषा शैली अदभुत रही
    कवि तुम्हें प्रणाम 🙏

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  2. अनुपम सृजन आदरणीय साथर नमन 🙏🙏🙏

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  3. लाजवाब सृजन! लय सरित सी बहती निश्छल निर्बाध।

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  4. अप्रतिम सृजन आदरणीय,नमन आपकी लेखनी को🙏

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  5. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
    सादर

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  6. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन

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