Monday, February 10, 2020

गीतिका छंद (वर्णिक) संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका छंद (वर्णिक) 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

विधान: गीतिका वार्णिक छंद को गण और मापनी के माध्यम से देखते हैं ..... 
{सगण जगण जगण भगण रगण सगण+लघु गुरु}
{112  121  121  211  212  112  12}
20वर्ण, 10-10 वर्णों पर यति,
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत लेने हैं 


अब हो गई अति देखिये,
               नित पाप हों कलिकाल में।
जकड़े विकार विनाश के 
                  सब रो रहे इस हाल में॥

यह क्रोध अग्नि जला रही , 
               करते नहीं जन प्यार क्यों ?
सब ढोंग को पहचानते , 
                पर कौनसा उपकार क्यों ? 

परदा पड़ा यह मोह का , 
                      अपने सगे सब दूर हैं।
दृग बंद वो करके चलें
                      यह रोग भी भरपूर हैं॥

धनवान हों सब चाहते ,
                     नर लालची बन घूमते।
हक मारते निज भ्रात का ,
                     बरबाद वो कर झूमते॥

अपने अहम् मद में घिरे , 
                सबको झुका कर यूँ चलें।
यह तर्क संगत है नहीं , 
                 फिरभी सभी कब हैं टलें॥

कहते पुराण व वेद जो , 
                  घटना घटे दिन रात वो।
कलिकाल पंचपदी चढ़ा , 
               सिर नृत्य तांडव घात वो॥

इसका प्रभाव घटा सके ,
                 रट नाम केवल राम का।
पढ़ प्रेम "मानस" में लिखा
         यह सार "कौशिक" काम का॥

संजय कौशिक 'विज्ञात'

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2020) को    "भारत में जनतन्त्र"  (चर्चा अंक -3609)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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