नवगीत ... संजय कौशिक 'विज्ञात'
मार्ग युक्ति के कम जीवन में,
नुक्ता चीनी ज्यादा है।
भाव विभोर सिंधु के मन में,
लहरों से कुछ वादा है।
1
नदिया बंध तोड़ती पल में,
वेग लहर का सँभले कब।
थोड़ा सा जो मोड़ देख ले,
शोर मचा देती है तब।
मधुर मोहिनी बल खाती सी,
कभी विनाशी चाल गजब।
जब से अनुपम शील स्वभावी,
रखे सिंधु मर्यादा है।
2
मेघ शराबी होकर बरसे,
झरने सारे लूट चुके।
मैले थे तालाब बावड़ी,
मैल हृदय के चूट चुके।
समझा समझा लोग कुओं को,
कब के सारे टूट चुके।
फूट चुके जब घाव रिसे तो,
देखा वो आमादा है।
3
तृप्त वेदना झंकृत वीणा,
दृश्य टूटते तारों का।
कार्य नहीं ये गैर किसी का,
है अपने मक्कारों का।
निर्भरता पर वार सदा ही,
होता अपने प्यारों का।
लुटती रही महत्वाकांक्षा,
अच्छा जीवन सादा है।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
सुन्दर भावों से सजा अनुपम नवगीत👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सुंदर नवगीत 👌मानवीकरण का बहुत अच्छा प्रयोग...बहुत बहुत बधाई शानदार सृजन की 💐💐💐
ReplyDeleteआत्मीय आभार नीतू जी
Deleteअति सुंदर छंद मे आपकी ये रचना मैने बोलते हुवे पढ़ा है
ReplyDeleteआभार
Deleteखूबसूरत भाव 👌👌
ReplyDeleteआभार
Deleteखूबसूरत भाव 👌👌
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत ही सुन्दर नवगीत. मानवीकरण शानदार प्रयोग
ReplyDeleteसादर
आत्मीय आभार अनिता जी
Deleteबहुत सुंदर नवगीत आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुराधा जी
Deleteबहुत सुंदर नव गीत , अभिराम अनुपम।
ReplyDeleteआत्मीय आभार वीणा जी
Deleteआदरणीय विज्ञात जी !भाव पूर्ण आपकी लेखनी के भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रत्येक पाठक को पाथेय हों रचना के लिए मंगल कामना।
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