नवरात्रि पर नवदुर्गा विशेष कुण्डलियाँ
संजय कौशिक 'विज्ञात'
शैलपुत्री
मैया को सादर नमन, करता जन-जन आज।
मातृ शैलपुत्री सदा, करती मंगल काज।।
करती मंगल काज, भक्ति भक्तों की बनकर।
शक्ति प्रथम यह आदि, खड़ी ममता सी तनकर।।
कह कौशिक कविराय, नहीं डूबेगी नैया।
रक्षक जग की देख, बने केवट भी मैया।।
ब्रह्मचारिणी
देती उत्तम युक्ति की, हितकारी माँ राह।
ब्रह्मचारिणी सब कहें, करती नेह अथाह।।
करती नेह अथाह, शक्ति संयम गुण भरती।
निर्भय कर संतुष्टि, भक्त को मैया वरती।
कह कौशिक कविराय, तमोगुण माँ हर लेती।
ब्रह्मचारिणी रूप, बना उत्तमता देती।।
चंद्रघंटा
पूरी हो हर कामना, चल मैया के द्वार।
मात चंद्रघंटा करे, निज भक्तों से प्यार।।
निज भक्तों से प्यार, हरे वो बाधा सारी।
मिटते ग्रह के दोष, कुंडली चमके न्यारी।।
कह कौशिक कविराय, बुरी लत से रख दूरी।
साधक बनके पूज, सभी इच्छा हों पूरी।।
कुष्मांडा
धारण कर अमरित कलश, रूप स्वर्ण सा पीत।
कुष्मांडा ब्रह्माण्ड की, नवल सृजन की रीत।।
नवल सृजन की रीत, सभी शस्त्रों से शोभित।
यश बल दे ऐश्वर्य, करे भक्तों का माँ हित।।
कह 'कौशिक' कविराय, चराचर जग के कारण।
आदि शक्ति का रूप, सदा करती माँ धारण।।
स्कंदमाता
होकर शेर सवार माँ, हर लेती जो ताप।
देख स्कंदमाता यही, सदा मिटाती पाप।।
सदा मिटाती पाप, मोक्ष माँ उनको देती।
साधक साधें योग, प्रभा बन चमके रेती।।
कह कौशिक कविराय, कालिमा हिय की धोकर।
धर मैया का ध्यान, दास चरणों का होकर।।
कात्यायनी
दानव का मर्दन किया, महिषासुर का अंत।
ये वो माँ कात्यायनी, भजते योगी संत।।
भजते योगी संत, उबारे जग सारे को।
छू सकता है कौन, भला ऐसे पारे को।।
कह कौशिक कविराय, सुनो हे कलि के मानव।
रक्षक माँ है शक्ति, डरें जिनसे हर दानव।।
कालरात्री
खोले इस दिन नेत्र माँ, दृष्टिपात का रूप।
श्रेष्ठ कालरात्री लगे, सुंदर दृश्य अनूप।।
सुंदर दृश्य अनूप, नष्ट रिपुओं को करती।
मन इच्छित वरदान, सदा साधक को वरती।।
कह कौशिक कविराय, उपासक जै जै बोले।
निर्भय सब संतुष्ट, भाग्य के ताले खोले।।
उत्तम माँ की भक्ति है, उत्तम माँ की शक्ति।
देख कालरात्री खड़ी, धारे काल विरक्ति।।
धारे काल विरक्ति, तामसिक बाधा घटती।
तन की व्याधि अनेक, शुभंकारी से हटती।।
कह कौशिक कविराय, रूप रहता ये सप्तम।
अग्नि जंतु जल शत्रु, भागते डर के उत्तम।।
महागौरी
ममता रूप अनूप है, भुक्ति-मुक्ति का गीत।
दिव्य महागौरी यही, उज्ज्वलता की रीत।।
उज्ज्वलता की रीत, चमकता है मुख मण्डल।
अभय सदा दे हाथ, नेह का भरा कमण्डल।।
कह कौशिक कविराय, मंगला देती समता।
हरती भव भय ताप, लुटाकर अपनी ममता।।
सिद्धिदात्री
वेदों ने महिमा कही, कहते सभी पुराण।
श्रेष्ठ सिद्धिदात्री यही, मिलते उचित प्रमाण।।
मिलते उचित प्रमाण, भक्ति करनी सिखलाते।
माँ के गौरव गान, हृदय में नित बस जाते।।
सुन कौशिक कविराय, सुनाये नौ भेदों ने।
मैया के नौ रूप, बताए इन वेदों ने।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'