नवगीत
चीर तिमिर की छाती / अवलंब
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 16/14
चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है।
रात व्यथा की बीत गई सुन
निश्चित भोर उजाला है।
कुम्भकार का चाक चले यूँ,
काल चक्र का फेरा है।
लगे थपेड़े मिट्टी पर जब,
घट बन पाता तेरा है।
कर्मवीर से जीत सका कब
बन्द भाग्य का ताला है।
चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है।
पवन पराक्रम नित्य दिखाये,
ऐसे ही बढ़ जाना है।
सूर्य अर्चि कर ग्रहण प्रेरणा,
जग को यूँ चमकाना है।
शीत पूर्णिमा सी औषध बन,
हरना हिय का छाला है।
चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है।
मर्यादित रह सागर जैसे,
भले क्रोध जब आ जाये।
अडिग हिमालय सा गुण लेना,
गुंजित घाटी समझाये।
चुभन नहीं भूलो शूलों की,
जिन टीसों ने पाला है।
चीर तिमिर की छाती को अब
सूरज उगने वाला है।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam

बहुत ही ऊर्जा से भरपूर,प्रेरणादायक,भावपूर्ण सृजन 👏👏👏👏👏👏👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही जोरदार उर्जा वान आपकी रचना आदरणीय बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजोश से ओत प्रोत रचना आ0
ReplyDeleteमन तिमिर को प्रकाश दिखाती सुंदर रचना आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब नवगीत 👌👌👌 नकारात्मकता में भी सकारात्मकता दिखाता सार्थक संदेश से भरा नवगीत ...हर पंक्ति बहुत ही अर्थपूर्ण 👏👏👏 अद्भुत सृजन को सादर नमन 🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत शानदार नवगीत सृजन सरस, लयबद्ध, सुंदर शब्द चयन ।
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